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केदारनाथ सिंह के उद्धरण

आज के कवि का ‘मैं’ एकवचन प्रथम पुरुष का ‘मैं’ न होकर ‘हम’ की तरह अमूर्त और व्यापक हो गया है, और ऐसा किसी बड़े आदर्श के प्रति आग्रह के कारण नहीं, बल्कि अमानवीकरण की एक बृहत्तर प्रक्रिया के अंतर्गत अपने आप और बहुत कुछ कवि के अंजान में ही हो गया है।

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