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श्यामसुंदर दास

1875 - 1945 | वाराणसी, उत्तर प्रदेश

समादृत आलोचक, भाषा विज्ञानी, संपादक और निबंधकार। ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ और ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ के संस्थापक।

समादृत आलोचक, भाषा विज्ञानी, संपादक और निबंधकार। ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ और ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ के संस्थापक।

श्यामसुंदर दास की संपूर्ण रचनाएँ

निबंध 3

 

उद्धरण 100

भाषा के बिना काव्य की कल्पना नहीं की जा सकती और भाव-जगत् के अभिव्यक्ति के अतिरिक्त, भाषा का कोई दूसरा प्रयोजन जान पड़ता है।

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मनुष्य-स्वभाव की एक और विशेषता यह है कि वह अपने को प्रकट किए बिना नहीं रह सकता। असभ्य से असभ्य जंगली लोगों से लेकर, संसार के अत्यंत सभ्य लोगों तक में—अपने विचारों और मनोभावों को प्रकट करने की प्रबल इच्छा प्रस्तुत रहती है।

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वैज्ञानिक वर्तमान युग बनाते हैं और कवि उनके भूत और भविष्य की आलोचना करते हैं—इसी मार्मिक और चुभने वाली आलोचना को कविता कहते हैं।

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जो देश अथवा जाति; जितनी अधिक परिष्कृत तथा सभ्य होगी, उसकी कला-कृतियाँ उतनी ही अधिक सुंदर और सुष्ठु होंगी।

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साहित्य की वेगवती सरिता, नियमों की अवहेलना कर स्वछंदतापूर्वक बहने में ही प्रसन्न रहती है।

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