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सैन भगत

1343 - 1433 | अमृतसर, पंजाब

रामानंद के बारह शिष्यों में से एक। जाति-प्रथा के विरोधी। सैन समुदाय के आराध्य।

रामानंद के बारह शिष्यों में से एक। जाति-प्रथा के विरोधी। सैन समुदाय के आराध्य।

सैन भगत की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 11

केस पक्या द्रस्टि गई, झर्या दंत और धुन्न।

सैना मिरतू पुगी, करले सुमरन पुन्न॥

सैन कहते हैं कि जब केश पक गए, दृष्टि चली गई, दाँत झड़ गए और ध्वनि मंद पड़ गई, तो जान लो-मृत्यु निकट है। स्मरण का पुण्य कर लो।

सैना अमरत प्रेम को, जिन पीयो बड़भाग।

रिदै तैतरी बज उठे, गूँजें छत्तीस राग॥

सैन कहते हैं कि जिस-जिस ने भी प्रेमामृत का पान किया है, वे बड़भागी हैं। इस अमृत रस के पीते ही भीतर की हृदय-तंत्री बज उठती है और मधुर-मधुर छत्तीसों राग गूँजने लगते हैं।

सैना रोऊँ किण सुमर, देख हूँसू किण अब्ब।

जो आए ते सब गये, हैं सो जैहें सब्ब॥

सैन कहते हैं—मैं किसे याद करके रोऊँ और किसे याद करके हँसूँ? जो आए थे, वे सब चले गए। जो हैं, वे सब चले जाएँगे।

केस कनौती ऊजली, सपट सेनसो देय।

सैना समयो पुग्यो, राम नाम भज लेय॥

कनौटी (कनपटी) तथा सिर पर सफ़ेद बाल जाएँ तो उसे सीधा-स्पष्ट समझौता मानना चाहिए कि संसार से विदा का समय गया है, राम नाम में चित्त लगा लो।

सैना संपत्ति लोभ वश, गये समंदर पार।

तां भी मिल्या संखड़ा, विधना लिखो ललार॥

सैन भगत कहते हैं कि संपत्ति प्राप्त करने के लिए समुद्र पर हीरे-जवाहरात लेने कई लोग गए, किंतु उन्हें शंख ही मिले। जो विधाता ने भाग्य में लिखा है, वही मिलेगा।

पद 15

सबद 26

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