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राजेश जोशी

1946 | नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश

आठवें दशक के प्रमुख कवि-लेखक और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

आठवें दशक के प्रमुख कवि-लेखक और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

राजेश जोशी का परिचय

समकालीन कविता के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर राजेश जोशी का जन्म 18 जुलाई 1946 को नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश में हुआ। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय पत्रकारिता की और फिर कुछ वर्षों तक अध्यापन भी किया। 

उनकी राजनीतिक कविताएँ बारीकी और नफ़ासत का नमूना पेश करती हैं। वे समय, स्थान और गतियों के अछूते संदर्भो से भरी हैं। इनमें काल का बोध गहरा और आत्मीय है। वे अपने मनुष्य होने के अहसास और उसे बचाए रखने का जद्दोजहद करती हैं। उनकी कविताओं में सामाजिक यथार्थ गहरे उतरता है। वे जीवन के संकट में भी गहरी आस्था को बनाए रखती हैं। उनकी कविताओं में बचपन की स्मृतियों, स्थितियों व प्रसंगों की बहुलता है। स्थानीयता उनकी कविता की एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति है। उनकी कविताओं में स्थानीय बोली-बानी, मिज़ाज और मौसम सबसे परिचय हो जाता है। अपनी प्रतिबद्धता को वे अब एक ज़िद की तरह सामने लेकर आए हैं। वह स्वयं कहते हैं कि ‘‘...इस समय के अंतर्विरोधों और विडंबनाओं को व्यक्त करने और प्रतिरोध के नए उपकरण तलाश करने की बेचैनी हमारी पूरी कविता की मुख्य चिंता है! उसमें कई बार निराशा भी हाथ लगती है और उदासी भी लेकिन साधारण जन के पास जो सबसे बड़ी ताक़त है और जिसे कोई बड़ी से बड़ी वर्चस्वशाली शक्ति और बड़ी से बड़ी असफलता भी उससे छीन नहीं सकती, वह है उसकी ज़िद।’’

‘एक दिन बोलेंगे पेड़’, ‘मिट्टी का चेहरा’, ‘नेपथ्य में हँसी’, ‘दो पंक्तियों के बीच’ और ‘ज़िद’ उनके काव्य-संग्रह हैं। 'गेंद निराली मिट्ठू की' नाम से बाल कविताओं का भी एक संग्रह प्रकाशित हुआ है। उन्होंने गद्य रचनाएँ भी की हैं। उनके दो कहानी-संग्रह ‘सोमवार और अन्य कहानियाँ’ और ‘कपिल का पेड़’ छप चुके हैं। ‘जादू जंगल’, ‘अच्छे आदमी’, ‘कहन कबीर’, ‘टंकारा का गाना’, ‘तुक्के पर तुक्का’ उनकी नाट्य-कृतियाँ हैं। ‘एक कवि की नोटबुक’ और ‘एक कवि की दूसरी नोटबुक’ के रूप में आलोचनात्मक टिप्पणियों की दो किताबें प्रकाशित हुई हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने भर्तृहरि की कविताओं की अनुरचना ‘भूमि का कल्पतरु यह भी’ शीर्षक से और मायकोव्स्की की कविताओं का अनुवाद ‘पतलून पहिना बादल’ शीर्षक से किया है। उन्होंने कुछ लघु फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ भी लिखी हैं।

‘दो पंक्तियों के बीच’ कविता-संग्रह के लिए उन्हें वर्ष 2002 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

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