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चंदबरदाई

1168 - 1192 | लाहौर, पंजाब

हिंदी के प्रथम महाकवि। वीरगाथा काल से संबद्ध। ‘पृथ्वीराज रासो’ कीर्ति का आधार-ग्रंथ।

हिंदी के प्रथम महाकवि। वीरगाथा काल से संबद्ध। ‘पृथ्वीराज रासो’ कीर्ति का आधार-ग्रंथ।

चंदबरदाई की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 3

समदरसी ते निकट है, भुगति-भुगति भरपूर।

विषम दरस वा नरन तें, सदा सरबदा दूर॥

जो लोग समदर्शी हैं, प्राणीमात्र के लिए समान भाव रखते हैं, उनको भोग और मोक्ष दोनों अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं। इसके विपरीत जो विषमदर्शी हैं, जो भेद-भावना से काम लेते हैं, उन्हें वह मुक्ति कदापि नहीं प्राप्त हो सकती। ऐसे लोगों से भोग और मोक्ष दोनों दूर भागते हैं।

सरस काव्य रचना रचौं, खलजन सुनिन हसंत।

जैसे सिंधुर देखि मग, स्वान सुभाव भुसंत॥

मैं महाकाव्य की रचना कर रहा हूँ। इस रचना को सुनकर दुष्ट लोग तो वैसे ही हँसेंगे जैसे हाथी को देखकर कुत्ते (मार्ग में) स्वभाव से ही भौंकने लगते हैं।

तौ पुनि सुजन निमित्त गुन, रचिए तन मन फूल।

जूँ का भय जिय जानिकै, क्यों डारिए दुकूल॥

सज्जन पुरुष तो इसके गुणों के कारण इस रचना से प्रसन्न ही होंगे जैसे कोई इस भय से कि इसमें जूँएँ पड़ जाएँ, दुपट्टे को फेंक थोड़े ही देता है। जैसे जूँओं के भय से कोई दुपट्टा नहीं फेंक देता वैसे ही दुष्ट लोगों के परिहास के भय से कवि काव्य-रचना से विमुख नहीं हो सकता।

 

पद 7

रासो काव्य 4

 

Recitation

aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

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