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भगवतीचरण वर्मा

1903 - 1981 | शफ़ीपुर, उत्तर प्रदेश

प्रेमचंद युग के समादृत उपन्यासकार-कहानीकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

प्रेमचंद युग के समादृत उपन्यासकार-कहानीकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

भगवतीचरण वर्मा का परिचय

जन्म : 01/08/1903 | शफ़ीपुर, उत्तर प्रदेश

निधन : 01/10/1981 | उत्तर प्रदेश

छायावादी कवि और प्रेमचंदोत्तर युग के प्रमुख उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा का जन्म उन्नाव जिले के सफीपुर क़स्बे में 30 अगस्त 1903 को एक विखंडित होते ज़मींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम देवीचरण वर्मा था जो पेशे से वकील थे। 1908 में फैली प्लेग महामारी में उनकी मृत्यु हो गई जिससे घर की आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई। इसका उनकी शिक्षा-दीक्षा पर असर पड़ा। 

वह बचपन से ही कविता लिखने लगे थे। कविता लिखने का शौक़ बढ़ा तो अपने स्कूल की हस्तलिखित पत्रिका के नियमित लेखक बन गए। ‘प्रताप’ और ‘शारदा’ जैसी पत्रिकाओं में छपने भी लगे थे। 15 वर्ष की अवस्था में ही उन्हें कानपुर के एक विशिष्ट साहित्यिक गुट में स्थान मिल गया जहाँ वह विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, रमाशंकर अवस्थी, चंडीकाप्रसाद मिश्र आदि के संपर्क में रहे। साहित्य में डूबे रहने के कारण हाईस्कूल और इंटर दोनों ही परीक्षाओं में दूसरे प्रयास में पास हो सके। आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह इलाहाबाद गए। हिंदी, अँग्रेज़ी और इतिहास विषय से 1926 में स्नातक किया फिर एल.एल.बी की परीक्षा पास की।

1928 में एल.एल.बी करने के पश्चात जीविकोपार्जन के लिए वकालत करने लगे लेकिन उनकी वकालत चल न सकी। हमीरपुर में वकालत के दौरान भद्री राजा बजरंगबहादुर सिंह के संपर्क में आए और कुछ समय उनके संरक्षण में रहे। इसी समय वह ‘चित्रलेखा’ के लेखन-कार्य में ज़ोर-शोर से जुट गए थे। ‘चित्रलेखा’ के प्रकाशन और उसकी बिक्री से उनका भाग्य कुछ बदला। अगले कुछ वर्ष कलकत्ता फ़िल्म कॉर्पोरेशन और ‘विचार’ पत्रिका से संबद्ध रहे, फिर फ़िल्म निर्देशक केदार शर्मा ने ‘चित्रलेखा’ फ़िल्म का निर्माण शुरू किया तो सिनेरियो लेखक के रूप में ‘बम्बई टाकीज़’ से जुड़ गए। अब वह पत्रकारिता भी करने लगे थे। 1950 तक ‘पतन’, ‘चित्रलेखा’ और ‘तीन वर्ष’ आदि उपन्यासों के प्रकाशन के साथ वह हिंदी उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। लखनऊ और दिल्ली के आकाशवाणी केंद्रों से भी उनकी संबद्धता रही। बाद के दिनों में उन्होंने अन्य कार्यों से विराम ले लिया और पूर्णकालिक साहित्य सृजन में रत हो गए।   
भगवतीचरण वर्मा ने अपने साहित्यिक जीवन का आरंभ एक कवि के रूप में किया था। उनकी आरंभिक कविताएँ छायावाद से प्रभावित हैं, जबकि कुछ कविताओं में प्रगतिवाद और प्रयोगवाद की भी झलक मिलती है। उनकी कविताओं का केंद्र-बिंदु ‘अस्मिता की खोज’ है और उनकी कविताओं में आत्म-दर्शन भी बहुधा अभिव्यक्त हुआ है। दार्शनिकता, कौतूहल, विशिष्ट चरित्र-चित्रण, हास्य-व्यंग्य, सरस भाषा-शैली जैसी विशेषताएँ रखने वाली कहानियों के साथ उन्होंने हिंदी कहानी-धारा में योगदान किया है। उनके निबंधों के दो वर्ग है, जहाँ एक में उन्होंने साहित्य की विधाओं पर लेखनी चलाई है तो दूसरे में सामाजिक समस्याओं पर विचार किया है। उनके एकांकी और नाटकों में समाज की गंभीर समस्याओं पर हास्य के पुट के साथ टिप्पणी की गई है और इस रूप में उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता प्रकट हुई है।

उपन्यासकार के रूप में अधिक ख्यातिलब्ध भगवती चरण वर्मा ने कई सशक्त एवं बहुचर्चित औपन्यासिक कृतियों की रचना की है। इन कृतियों में युगीन चित्रण के साथ ही सामाजिक यथार्थ को उद्घाटित किया गया है। पाप और पुण्य जैसे विषय पर ‘चित्रलेखा’ के साथ ही उन्हें ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’, ‘आख़िरी दाँव’, ‘अपने खिलौने’ और ‘भूले-बिसरे चित्र’ के रूप में चार वृहत उपन्यासों के लिए हिंदी उपन्यास परंपरा में अत्यंत सम्मान से रखा जाता है। 

उन्हें ‘भूले-बिसरे’ चित्र के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्रदान किया गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया जबकि वह राज्यसभा सदस्य के रूप में भी मनोनीत किए गए। 

प्रमुख कृतियाँ

उपन्यास :  पतन, चित्रलेखा, तीन वर्ष, टेढ़े-मेढ़े रास्ते, अपने खिलौने, भूले-बिसरे चित्र, सामर्थ्य और सीमा, थके पाँव, रेखा, सबहिं नचावत राम गोंसाईं, प्रश्न और मरीचिका, धुप्पल, क्या निराश हुआ जाए।

कहानी-संग्रह : दो बाँके, मोर्चाबंदी, राख़ और चिंगारी, इनस्टॉलमेंट।

काव्य-संग्रह : मधुकण, प्रेम-संगीत, मानव।

नाटक : वसीहत, रुपया तुम्हें खा गया, सबसे बड़ा आदमी।

संस्मरण : अतीत के गर्त से।

साहित्यालोचन : साहित्य के सिद्धांत तथा रूप।





    

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