भगवानदास मोरवाल का परिचय
23 जनवरी 1960 को नगीना, मेवात में जन्म। राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिंदी) और साथ ही पत्रकारिता में डिप्लोमा। आधुनिक कथा साहित्य जगत में भगवानदास मोरवाल का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका कथा साहित्य आधुनिक संदर्भों को समझने में पाठ्य वर्ग की पूर्ण रूप से सहायता करता है। उनके कथा साहित्य में स्वातन्त्रोत्तर युग में आए परिवर्तनों, उत्पन्न हुई समस्याओं तथा सामाजिक विघटनों को हमारे समक्ष यथार्थ रूप में अभिव्यक्त करता है। लेखक ने अपने उपन्यासों और कहानियों में भारत के उन अनछुए क्षेत्रों को उभारा है जो अभी तक हाशिए पर थे। जिनकी समस्याओं, परिवेश तथा संस्कृति से हम अनभिज्ञ थे। मोरवाल ने अपने कथा साहित्य के माध्यम से इन्हें केंद्र में लाने की चेष्टा की है। उनके कथा साहित्य के अध्ययन से इन अनछुए क्षेत्रों में व्याप्त विभिन्न सामाजिक समस्याओं, विघटन, सामाजिक उथल-पुथल को न केवल हम समझ पाए बल्कि इनसे निजात पाने के लिए हमें नई दिशा और दृष्टि प्राप्त हुई। उनके लेखन में मेवात क्षेत्र की ग्रामीण समस्याएँ उभर कर सामने आती हैं। उनके पात्र हिंदू-मुस्लिम सभ्यता के गंगा-जमुनी किरदार होते हैं। कंजरों की जीवन शैली पर आधारित उपन्यास रेत को लेकर उन्हें मेवात में कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।
कृतियाँ :-‘काला पहाड़’(1999), ‘बाबल तेरा देस में’(2004), ‘रेत’(2008), ‘नरक मसीहा’(2014), ‘हलाला’(2015),‘सुर बंजारन’(2017), ‘वंचना’(2019), ‘शकुंतिका’(2020), ‘ख़ानज़ादा’(2021), ‘मोक्षवन’(2023) (उपन्यास); ‘सीढ़ियाँ, माँ और उसका देवता’(2008), ‘लक्ष्मण-रेखा’(2010), दस ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’(2014), ‘धूप से जले सूरजमुखी’(2021), ‘महराब और अन्य कहानियाँ’(2021), ‘कहानी अब तक’ (दो खंड, 2023) (कहानी-संग्रह); ‘पकी जेठ का गुलमोहर’(2016), ‘यहाँ कौन है तेरा’(2023) (स्मृति-कथा); ‘लेखक का मन’(2017) (वैचारिकी); ‘दोपहरी चुप है’(1990) (कविता); ‘बच्चों के लिए कलयुगी पंचायत’(1997) एवं अन्य दो पुस्तकों का सम्पादन; कुछ कृतियों का अँग्रेज़ी और अन्य भाषाओं में अनुवाद।
सम्मान/पुरस्कार :- मुंशी प्रेमचंद स्मारक सारस्वत सम्मान (2020-21), दिल्ली विधानसभा; वनमाली कथा सम्मान, भोपाल (2019); स्पंदन कृति सम्मान, भोपाल (2017); श्रवण सहाय अवार्ड (2012); जनकवि मेहरसिंह सम्मान (2010), हरियाणा साहित्य अकादमी; अंतरराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान (2009); कथा (यूके) लन्दन; ‘शब्द साधक ज्यूरी सम्मान’(2009); कथाक्रम सम्मान, लखनऊ(2006); साहित्यकार सम्मान (2004), हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार; साहित्यिक कृति सम्मान (1994), हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार; साहित्यिक कृति सम्मान (1999), हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार; पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण द्वारा मद्रास का राजाजी सम्मान (1995); डॉ. अंबेडकर सम्मान (1985), भारतीय दलित साहित्य अकादमी; पत्रकारिता के लिए प्रभादत्त मेमोरियल अवार्ड (1985) तथा शोभना अवार्ड (1984)।
पूर्व सदस्य : हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार एवं हरियाणा साहित्य अकादमी।