कवण न हूवा! कवण न होयसी

kav.n n huuvaa! kav.n n hoyasii

जांभोजी

जांभोजी

कवण न हूवा! कवण न होयसी

जांभोजी

और अधिकजांभोजी

    कवण हूवा! कवण होयसी? किण सह्यो दुख भारूँ।

    कवण गइया कवण जासी, कवन रह्या संसारूँ।

    अनेक-अनेक चलंता दीठा, कलिका माणस कौण विचारूँ॥

    जो चित होता सो चित नाहीं, भल खोटा संसारूँ।

    किसकी माई किसका भाई, किसका पख परवारूँ॥

    भूली दुनियां मर-मर जावै चीन्हों करताऊं।

    विष्णु-विष्णु तू भण रे प्राणी! बल-बल बारंबारूँ॥

    कसणीं कसवा भूल बहवा, भाग परापति सारूँ।

    गीता नाद कविता नाऊं, रंग फटा रस टारूँ॥

    फोकट प्राणी भूरमे भूला, भलजे यों चीन्हों करतारूँ।

    जामण मरण बिगावो चूकै, रतन काया ले पार पहुंचै तो आवागवण निवारूँ॥

    इस संसार से कौन उत्पन्न नहीं हुआ? भविष्य में भी कौन नहीं होगा? और इस संसार में जन्म लेकर किसने संसार के दुःख रूप भार को सहन नहीं किया? इस संसार से कौन नहीं गया? ऐसा कौन है जो इस संसार से प्रस्थान नहीं करेगा? और ऐसा कौन है जो इस संसार में स्थिर रहा? इस संसार से अनेकानेक महान व्यक्तियों को जब जाते हुए देखा है तब कलियुग के बेचारे अल्पायु मनुष्य की तो गणना ही क्या है? माता के गर्भस्थ प्राणी के चित में जो ईश्वर था वह जन्मने पर प्राणी के हृदय में नहीं रहा—प्राणी अपने हृदयस्थल ईश्वर को भूल गया, फिर वह संसार में बुरा हो गया। इस संसार में कौन किसकी माँ है? कौन किसका भाई है? और कौन किसका कुटुंब-परिवार है? संसार के लोग मोहासक्ति में बार-बार मर-मर जाते हैं क्योंकि उन्होंने परमात्मा को नहीं पहचाना। हे प्राणी! तू परमात्मा का बार-बार तथा निरंतर 'विष्णु-विष्णु' उच्चारण कर। तुम संयम की “कसणी” कसो और संसार की भूल में मत बहो! मनुष्य को प्राप्ति तो अपने भाग्य के अनुसार होती है। गीता का उद्घोष मात्र लौकिक कवियों की कविता नहीं मनुष्य पर चढ़े लौकिक रंग को फाड़कर वास्तविक रस तत्व को अलग करती है। हे प्राणी! तुम व्यर्थ में ही भ्रम में पड़े हो, क्या तुमने परमात्मा की पहचान कर ली है! उसकी पहचान कर लेने से जन्म-मरण से मुक्त होकर व्यक्ति भवसागर से पार हो सकता है और अपना आवागमन मिटा सकता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जाम्भोजी की वाणी (पृष्ठ 221)
    • रचनाकार : जाम्भोजी
    • प्रकाशन : Vikas Prakashan
    • संस्करण : 2001

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए