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चित को चोर अब जो पाउं

chit ko chor ab jo paun

परमानंद दास

परमानंद दास

चित को चोर अब जो पाउं

परमानंद दास

और अधिकपरमानंद दास

    चित को चोर अब जो पाउं।

    द्वार कपाट बनाय जतन कर नीके माखन दूध चखाउं।

    जैसे निसंक धसत मंदिर में तिहि ओसर जो अचानक पाउं।

    गहि अपने कर सुद्दढ मनोहर बहोत दिनन की रुचि उपजाउं।

    राखो कुच बिच निरंतर प्रति दिनन को ताप बुझाऊं।

    परमानंद नंदनंदन को परघर तें परिभ्रमन मिटाऊं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप के कवि : परमानंददास (पृष्ठ 47)
    • संपादक : हरगुलाल
    • रचनाकार : परमानंददास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
    • संस्करण : 2008

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