Font by Mehr Nastaliq Web

रूस के पत्र (चौदह)

roos ke patr (chaudah)

रवींद्रनाथ टैगोर

रवींद्रनाथ टैगोर

रूस के पत्र (चौदह)

रवींद्रनाथ टैगोर

और अधिकरवींद्रनाथ टैगोर

    लैंडडाउन

    इस बीच में दो-एक बार मुझे दक्षिण द्वार से सटकर जाना पड़ा है, वह ‌द्वार मलय समीर का दक्षिण-द्वार नहीं था, बल्कि जिस द्वार से प्राण-वायु अपने निकलने के लिए रास्ता ढूँढ़ती है, वह द्वार था। डॉक्टर ने कहा—नाड़ी के साथ हृदय की गति का जो क्षण भर का विरोध हुआ था, वह थोड़े पर से ही निकल गया। इसे अवैज्ञानिक भाषा में मिराकिल (जादू) कहा जा सकता है—अब से ख़ूब सावधानी से रहना चाहिए। अर्थात् उठ कर चलने-फिरने से हृदय में वाण आकर लग सकता है—लेटे रहने से लक्ष्य भ्रष्ट हो सकता है। इसलिए भले आदमी की तरह अधलेटी अवस्था में दिन काट रहा हूँ। डॉक्टर कहता है—इस तरह दस वर्ष बिना विघ्न-बाधा के कट सकते हैं, उसके बाद दशम दशा को रोक ही कौन सकता है? बिस्तर पर तकि के सहारे लेटा हुआ हूँ, मेरी चिट्ठी की लाइनें भी मेरी देह-रेखा की नक़ल कर रही हैं, ठहरो ज़रा उठ कर बैठ जाऊँ।

    मालूम होता है, तुमने कुछ दुःसंवाद भेजा है। शरीर उस अवस्था में पड़ने से डरता है, कहीं ज़ोरदार लहरों के धक्के से टूट न जाए। बात क्या है, उसका आभास मुझे पहले ही मिल चुका था—विस्तृत विवरण का धक्का सहना मेरे लिए कठिन है। इसलिए मैंने तुम्हारी चिट्ठी ख़ुद नहीं पढ़ी, अमिय को पढ़ने दी है।

    जिस बंधन ने देश को जकड़ रखा है, झटका दे-दे कर उसे तोड़ डालना चाहिए। हर झटके में आँखों की पुतली निकल आएगी, परंतु इसके सिवा बंधन-मुक्ति का अन्य उपाय ही नहीं है। ब्रिटिश राज अपना बंधन अपने ही हाथ से तोड़ रहा है, उसमें हमारी तरफ़ से काफ़ी वेदना है, पर उसकी तरफ़ से भी नुक़सान कम नहीं है। सबसे बढ़कर नुक़सान यह है कि ब्रिटिश राज अपना मान खो चुका है। भीषण अत्याचार से हम डरते हैं, पर उस भय में भी सम्मान है, किंतु कापुरुष के अत्याचार से हम घृणा करते हैं। ब्रिटिश साम्राज्य आज हमारी घृणा से धिक्कृत हो रहा है। यह घृणा ही हमें बल देगी, इस घृणा के बल पर ही हम विजयी होंगे।

    अभी मैं रूस से आया हूँ—देश के गौरव का मार्ग कितना दुर्गम है, इस बात को मैं वहाँ स्पष्ट देख आया हूँ। वहाँ के तपस्वियों ने जो असह्य कष्ट सहे हैं, उनकी तुलना में पुलिस की मार को पुष्प वृष्टि समझना चाहिए। देश के युवकों से कहना कि अब भी बहुत कुछ सहना बाक़ी—है उसमें कोई कोर-कसर नहीं रखी जाएगी। इसलिए अभी से वे यह कहना शुरू न करें कि 'बहुत लग रही है, अब सहा नहीं जाता।' यह कहना एक तरह से लाठी को अर्घ्य देना है।

    देश-विदेश में आज भारत जो गौरव पा रहा है, उसका एकमात्र कारण है कि उसने मार की परवाह नहीं की। दुखों की उपेक्षा करने की जो हमारी तपस्या है, उसे हम कभी भी न छोड़ें। पशुबल बार-बार लगातार हमारे पशुबल को जगाने की कोशिश कर रहा है, अगर वह उसमें सफल हो गया, तो हम हार जाएँगे। दुख पा रहे हैं, इसलिए हमें दुख नहीं करना चाहिए। यही हमारे लिए मौक़ा है कि हम प्रमाणित कर दें कि हम मनुष्य हैं—पशु की नक़ल करते ही हमारा यह शुभ योग नष्ट हो जाएगा। अंत तक हमें कहना होगा कि 'हम डरते नहीं।' बंगाल का धैर्य कभी-कभी नष्ट हो जाता है, यह हमारी कमज़ोरी है। जब हम नाख़ून और दाँतों से काम लेने लगते हैं, तब वह हमला दाँत-नाख़ून वालों के लिए सलाम ही साबित होता है। उपेक्षा करो, नक़ल मत करो। अनुवर्षन नैव नैव च।

    मुझे सबसे बड़ा दुख इस बात का है कि मेरे पास यौवन की पूँजी नहीं रही। मैं गतिहीन होकर पांथशाला में पड़ा हुआ हूँ—जो लोग रास्ते में चल रहे हैं, उनके साथ चलने का समय हाथ से निकल गया।

    29 अक्टूबर, 1930

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY