कवित्त

वर्णिक छंद। चार चरण। प्रत्येक चरण में सोलह, पंद्रह के विराम से इकतीस वर्ण। चरणांत में गुरू (ऽ) अनिवार्य। वर्णों की क्रमशः आठ, आठ, आठ और सात की संख्या पर यति (ठहराव) अनिवार्य।

1831

रीतिकालीन कवि। देवनदी गंगा की स्तुति में लिखित ग्रंथ 'गंगाभरण' से प्रसिद्ध।

1841 -1904

रीतिकालीन अलक्षित कवि। कविता सामान्य, शब्द-लाघव और परिपाटी निर्वाह के लिए उल्लेखनीय।

1853 -1903

रीतिकाल और आधुनिक काल की संधि रेखा पर स्थित अलक्षित कवि।

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