कवित्त

वर्णिक छंद। चार चरण। प्रत्येक चरण में सोलह, पंद्रह के विराम से इकतीस वर्ण। चरणांत में गुरू (ऽ) अनिवार्य। वर्णों की क्रमशः आठ, आठ, आठ और सात की संख्या पर यति (ठहराव) अनिवार्य।

रीतिकाल के अलंकारप्रिय कवि। शृंगार के साथ सरल भक्तिपरक रचनाओं के रचयिता।

1883

भारतेंदु युग की अचर्चित कवयित्री।

1689 -1750

रीतिबद्ध कवि। दोहों में चमत्कार और उक्ति-वैचित्र्य के लिए स्मरणीय।

रीतिकाल के सरस-सहृदय आचार्य कवि। कविता की विषयवस्तु भक्ति और रीति। रीतिग्रंथ परंपरा में काव्य-दोषों के वर्णन के लिए समादृत नाम।

1556 -1627

भक्तिकाल के प्रमुख कवि। व्यावहारिक और सरल ब्रजभाषा के प्रयोग के ज़रिए काव्य में भक्ति, नीति, प्रेम और शृंगार के संगम के लिए स्मरणीय।

1868

दियरा (उत्तर प्रदेश) के ज़मींदार रुद्र प्रताप साही की विवाहिता। कविता के नाम पर सरल भाषा में हृदय के कोमल भाव-मात्र की प्रस्तुति।

-1831

भक्त, कथावाचक और मानस-व्याख्याकार के रूप में प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि। 'कवित्त रामायण' के रचनाकार।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

रीतिकाल और भारतेंदु युग की संधि रेखा पर स्थित अलक्षित कवि।

1883

अवध प्रांत के प्रतापगढ़ की महारानी। देशाटन से ज्ञान और अनुभव पाया। राम-कृष्ण की भक्त।

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