कवित्त

वर्णिक छंद। चार चरण। प्रत्येक चरण में सोलह, पंद्रह के विराम से इकतीस वर्ण। चरणांत में गुरू (ऽ) अनिवार्य। वर्णों की क्रमशः आठ, आठ, आठ और सात की संख्या पर यति (ठहराव) अनिवार्य।

रीतिकालीन कवि। शृंगार काव्य के रचयिता। शब्द-चमत्कार पर विशेष बल।

1869 -1907

भारतेंदुकालीन अलक्षित कवि। रीतिकालीन संस्कारों का प्रभाव, कविता के कथ्य और शिल्प पर रीतिवाद का प्रभाव।

भाषा और भाव के स्तर पर पुरानी परिपाटी पर रचना करने वाले अलक्षित कवि।

1753 -1833

रीतिकाल के अंतिम प्रसिद्ध कवि। भाव-मूर्ति-विधायिनी कल्पना और लाक्षणिकता में बेजोड़। भावों की कल्पना और भाषा की अनेकरूपता में सिद्धहस्त कवि।

रीतिकाल के आचार्य कवि। साहित्यमर्मज्ञ, भावुक और अपूर्व काव्य कौशल में प्रवीण। इनकी भाषा में न कहीं कृत्रिम आडंबर है, न गति का शैथिल्य और न शब्दों की तोड़ मरोड़।

ओरछानरेश इंद्रजीत सिंह की कृपापात्र नर्तकी और विदुषी। प्रचलित है कि आचार्य केशवदास ने 'कविप्रिया' नामक ग्रंथ प्रवीण को कविशिक्षा देने हेतु रचा था।

1769

अठारहवीं सदी के संत कवि। पदों में हृदय की सचाई और भावों की निर्भीक अभिव्यक्ति। स्पष्ट, सरल, ओजपूर्ण और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग।

सूफ़ी काव्य परंपरा के कवि। संयोग और वियोग की विविध दशाओं के वर्णन में सिद्धहस्त। 'रसरतन' ग्रंथ कीर्ति का आधार।

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