Font by Mehr Nastaliq Web

वो दिखा रहे हैं जल्वा...

wo dikha rahe hain jalva. . .

ज्ञानराज माणिकप्रभु

अन्य

अन्य

ज्ञानराज माणिकप्रभु

वो दिखा रहे हैं जल्वा...

ज्ञानराज माणिकप्रभु

और अधिकज्ञानराज माणिकप्रभु

    वो दिखा रहे हैं जल्वा चेहरा बदल बदल के।

    मरकज़ हैं वो अकेले सारी चहल-पहल के॥

    देखी जो शक्ल उनकी लगते हैं अपने जैसे।

    मिलने उन्हें चला है ये दिल उछल-उछल के॥

    उनको गले लगाकर पहलू में बैठने को।

    बेताब हो रहा है दिल ये मचल-मचल के॥

    शीशे में अक़्स अपना देखा वो दिख रहे हैं।

    धुँधला रही हैं आँखें आँसू निकल निकल के॥

    वो दूर भी नहीं हैं, हैं पास कह सकते।

    पहचान 'ज्ञान' चेहरे तेरी अगल-बगल के॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्ञानराज माणिकप्रभु
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY