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विदा

vida

मन ही मन दुलरा लूँ मैं प्रिय बिंब तुम्हारा

ऐसा साहस करता हूँ मैं अंतिम बार,

हृदय-शक्ति से मैं अपनी कल्पना जगाकर

सहमे बुझे-बुझे वे सुख के क्षण लौटाकर,

मधुरे, मैं करता हूँ याद तुम्हारा प्यार।

वर्ष हमारे भागे जाते, बदल रहे हैं

बदल रहे वे हमको, सब कुछ बदल रहा,

अपने कवि के लिए प्रिये तुम तो ऐसे

मानो किसी क़ब्र का ओढ़े तम जैसे,

और तुम्हारा मीत तमस में लुप्त हुआ।

तुम अतीत की मित्र करो, स्वीकार करो

मेरे मन की कर लो अंगीकार विदा,

विदा जिस तरह से हम विधवा को करते

बाँहों में चुपचाप मित्र को ज्यों भरते,

निर्वासन से पहले लेते गले लगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : अलेक्सान्द्र पूश्किन चुनी हुई रचनाएँ (खंड-1) (पृष्ठ 35)
  • रचनाकार : अलेक्सान्द्र पूश्किन
  • प्रकाशन : प्रगति प्रकाशन, मास्को
  • संस्करण : 1982

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