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वैसे जीती जैसे मैं लिखती

vaise jiti jaise main likhti

अनुवाद : प्रत्यूष पुष्कर

मारीना त्स्वेतायेवा

अन्य

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मारीना त्स्वेतायेवा

वैसे जीती जैसे मैं लिखती

मारीना त्स्वेतायेवा

और अधिकमारीना त्स्वेतायेवा

    वैसे जीती जैसे मैं लिखती : छोड़ो—रास्ता

    ईश्वर माँगता है मुझसे—और मित्र नहीं माँगते

    माथे पर एक चुंबन—संताप मिटाती

    मैं तुम्हारा माथा चूमती हूँ।

    तुम्हारी आँखों पर एक चुंबन—अनिद्रा भगाती

    मैं तुम्हारी आँखें चूमती हूँ

    होंठों पर एक चुंबन—एक घूँट पानी है

    मैं तुम्हारे होंठ चूमती हूँ

    माथे पर एक चुंबन—स्मृति मिटाती।

    काला पहाड़

    पृथ्वी का प्रकाश रोकता है।

    समय-समय-समय

    ईश्वर को उसका टिकट वापस करने के लिए।

    मैं इनकार करती हूँ—होने से

    अमानवों के पागलख़ाने में

    मैं इनकार करती हूँ—जीने से

    तैरने से

    मानुष-रीढ़ की धार पर,

    मुझे कानों में छेद की ज़रूरत नहीं,

    देखने वाली आँखों की नहीं

    मानुष-रीढ़ की धार पर तैरने से इनकार करती हूँ

    तुम्हारी पागल दुनिया से—एक उत्तर :

    मैं इनकार करती हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : मारीना त्स्वेतायेवा

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