उनकी पसंद की औरतें

unki pasand ki aurten

शैलजा पाठक

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उनकी पसंद की औरतें

शैलजा पाठक

और अधिकशैलजा पाठक

    उन्हें ज़ुबान वाली औरतें पसंद नहीं थीं

    उन्हें परदे वाली औरतें भी नहीं थीं पसंद

    रंग की ख़ास ज़रूरत उनकी पसंद नहीं

    उन्हें गहरी आँखों वाली औरतें जितनी पसंद थीं

    उतनी ही छोटी आँखों और पतली देह वाली भी

    वे शिकायतों से चिढ़ जाते थे

    वे ज़रा-सी माँग पर भी अवसाद से भर जाते थे

    उन्हें ऐसी औरतें पसंद थीं जो समय से उनकी बात का जवाब दें

    जो उनकी बात को बिना नखरा दिखाए मान जाएँ

    ऐसी औरतें जो उनकी ज़िंदगी में दख़ल दें

    ऐसी हो अपनी ज़िंदगी का रोना लेकर बैठें

    उन्हें ऐसी औरतें तो ज़रा भी नहीं पसंद थीं जो हिसाब लेने लगें

    औरत को देह की सरंचना में ज़्यादा लचीला होना चाहिए

    उन्हें देह की सीमा पर कोई बैरियर नहीं बनाना चाहिए

    उन्हें उस करवट होकर नहीं जताना चाहिए कि देह के क़र्ज़ को मत भुलाना

    उन्हें बार-बार ऐसा कहना चाहिए :

    तुम्हें जब भी हो ज़रूरत मुझे बुलाना

    वे आखेट पर हैं और औरतें शिकार हो रहीं

    औरतें बीमार हो रहीं

    ये औरतें ईमानदारी का लेबल लगाकर

    तमाम आदमख़ोरों को बचा रहीं

    औरतें कमज़ोर हो रही हैं

    ज़रा-ज़रा-सी चाह में अपना सब कुछ लुटा रही हैं

    वे कभी पलट कर नहीं सुनते इनकी बात

    पोंछते आँसू

    दुख में थामते हाथ

    ज़रूरत पर करते बात

    उन्हें ऐसी औरतें बिल्कुल नहीं पसंद जो तिरियाचरित्तर दिखाएँ

    दरअस्ल, उन्हें औरत नहीं ही है पसंद

    कि कठपुतलियों के देश से तमाशा ख़त्म हो जाए

    उनकी उँगलियों में डोरी है

    वही नचाते हैं

    वही सुलाते हैं

    वही बदलते हैं कपड़े

    वही किसी बक्से में उतार धरते हैं उनके कपड़े

    कपड़े की औरत भी अब तो छटपटा रही

    छूटने-टूटने के डर से उन्हीं रंगरेज़ों के गीत गा रही

    तमाम रात विलापती औरत के नज़दीक बहुत भीगी हूँ मैं

    कितनी-कितनी कहानियों में वह छली जा रही!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शैलजा पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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