उधर के चोर

udhar ke chor

अरुण कमल

अरुण कमल

उधर के चोर

अरुण कमल

और अधिकअरुण कमल

    उधर के चोर भी अजीब हैं

    लूट और डकैती के अजीब-ओ-ग़रीब क़िस्से—

    कहते हैं ट्रेन डकैती सात बजते-बजते संपन्न हो जाती है

    क्योंकि डकैतों को जल्दी सोने की आदत है

    और चूँकि सारे मुसाफ़िर बिना टिकट

    ग़रीब-ग़ुरबा मज़दूर जैसे लोग ही होते हैं

    इसलिए डकैत किसी से झोला किसी से अँगोछा चुनौटी

    खैनी की डिबिया छीनते-झपटते

    चलती गाड़ी से कूद रहड़ के खेत में गुम हो जाते हैं;

    और लूट की जो घटना अभी-अभी प्रकाश में आई है

    उसमें बलधामी लुटेरों के एक दल ने दिन-दहाड़े

    एक कट्ठे खेत में लगा चने का साग खोंट डाला

    और लौटती में चूड़ीहार की चूड़ियाँ लूट लीं;

    लेकिन इससे भी हैरतअंगेज़ है चोरी की एक घटना

    जो संपूर्ण क्षेत्र में आज भी चर्चा का विषय है—

    कहते हैं एक चोर सेंध मार घर में घुसा

    इधर-उधर टो-टा किया और जू कुछ मिला

    तब चुहानी में रक्खा बासी भात और साग खा

    थाल वहीं छोड़ भाग गया—

    वो तो पकड़ा ही जाता यदि दबा ली होती डकार।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अरुण कमल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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