उदास भोरक एक गीत
udaas bhorak ek geet
की लिखू? की गाउ? ककरा सुनाउ?
ई उदास भोरक गीत!
के सुनत? ककरा छैक सुनि लेबाक सामर्थ्य?
जगतीक चहल-पहलसँ बाहर
एक तंग कोठलीक दायरामे
अपनाकेँ समेटि लेबाक प्रयास
आब अनसोहाँत लागि रहल।
भिनसुरका कुहेशसँ साँझक
पथरकोइलाक धुआँ तकक
अविराम पथ...
एहिना एक धुरीपर
घूमि रहल अछि।
कोनो सौन्दर्य नहि
कोनो नवीनता नहि
हृदयक टीससँ लऽ कए
शारीरिक टीस धरि।
लगैत अछि जेना लाल
तप्त लोहाक छड़—
बढ़ल जा रहल अछि
हमर पूरा अस्तित्वकेँ जरौने
भस्मसात् केने।
एक दर्द, अनेक दर्द—
दर्द, की दर्द?
सभटा मिझरा गेल अछि
सभ दर्द।
झरकैत हवाक बीच
कहुखनक ठंढ भरल सिहकन
पोर-पोरकेँ कँपकपा दैत अछि।
जेना आगू महक केराक
भालरि फड़फड़ा रहल अछि।
ककरो कखनोक मधुर स्पर्श...
सम्पूर्ण चेतनाकेँ—
डूबाक देबाक प्रयास।
कोनो कल्पनाक फुलायल
गाछ आ सुगंधि
सभ एक ठाम आबि मीलि
लऽ रहल अछि चुटकी
हमर भावुक मोनकेँ
—मानि लेलहुँ जे हम अपनाकेँ
बिसरा लेने छी।
छोड़ि देने छी सुखद अतीतकेँ
कोनो डायरीक पन्नामे आ
मोनक 'डबल लॉक'मे।
तखन एहि वर्त्तमानमे कछमछाइत
दर्दसँ चटकैत बारुद जकाँ हमर देह
खाली स्मृतिपर किए जीबि रहल अछि?
हम अपनाकेँ नष्ट नहि करऽ
चाहैत छी, नहि! नहि!!
अपन देहक माटिमे नहि मिलऽ देब
मुदा कोना?
के बुझत? के सुनत?
आह, ककरो तँ सुतबाक चाही!
(ई उदास भोरक गीत)
- पुस्तक : चक्रव्यूह पसरैत (पृष्ठ 43)
- रचनाकार : अशोक
- प्रकाशन : नवारम्भ
- संस्करण : 2023
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