तुम्हारी उपस्थिति में मैंने फिर से पा लिया है अपना नाम
अपना नाम, जो अलग होने की पीड़ा में छिपा था,
मैंने फिर से पा ली हैं वे आँखें, जो अब नहीं हैं ज्वरग्रस्त,
और परछाइयों को बेधती लपट जैसी तुम्हारी हँसी ने
विगत कल की बर्फ़ के पार
मेरे लिए उद्घाटित कर दिया है अफ़्रीक़ा—
संभ्रमों और बेतरतीब विचारों के प्रति आसक्ति वाले मेरे दस वर्ष
और शराब से बदहाल मेरी नींद
और वह यंत्रणा, जो भविष्य के अहसास से
वर्तमान को भी बोझिल बनाती है
और जो प्यार को एक निर्बाध नदी में बदल देती है,
तुम्हारी उपस्थिति में मैंने फिर से पा ली है
अपने रक्त की स्मृति
और हमारे दिवसों के गले में इतराते हँसी के हार—
दिवस, ताज़ादम ख़ुशी से जगमगाते हुए।
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 366)
- रचनाकार : डेविड डियॉप
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.