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तुम्हारे लिए मैं क्या-क्या छोड़ आया हूँ

tumhare liye main kya kya chhoD aaya hoon

अनुवाद : तनुज

रफ़ाइल अलबर्ती

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रफ़ाइल अलबर्ती

तुम्हारे लिए मैं क्या-क्या छोड़ आया हूँ

रफ़ाइल अलबर्ती

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    सिर्फ़ तुम्हारे लिए मेरी जाँ!

    मैं छोड़ आया हूँ अपना वह घना जंगल,

    गुम हुई अपनी किशोर वाटिका,

    नींद में अचेत पड़ा एक प्यारा कुत्ता।

    मेरे सारे महत्त्वपूर्ण वर्ष मैं छोड़ आया हूँ

    वे निर्वासित हो चुके हैं लगभग—

    इस एक सर्द जीवन में…

    मैं छोड़ आया हूँ एक स्पंदन,

    एक कौतूहल,

    एक अबूझ आग की प्रतिभा।

    मैं छोड़ आया हूँ निराशा पर पसरी अपनी छाया

    विदाई के ख़ून से सनी हुई वे दो आँखें।

    एक उदास कबूतर हुआ करती थी नदी के किनारे

    जिसे मैं छोड़ आया हूँ अपने हाल।

    अपने प्रिय घोड़े को रणभूमि की धूल में लिपटा हुआ

    छोड़ आया हूँ मैं वह समुद्र-गंध।

    मैं छोड़ आया हूँ—तुम्हें निहारने भर की निरंतरता!

    मेरी जाँ! जो कुछ भी मेरा था,

    मैं सब कुछ तुम्हारे लिए ही तो छोड़ आया हूँ।

    और इतनी अधिक पीड़ा सहने के बदले

    मुझे चाहिए पूरा का पूरा ‘रोम’

    आख़िरकार मैंने इन तमाम ख़ूबसूरत चीज़ों को

    सिर्फ़ तुम्हें पाने भर के लिए ही तो छोड़ा है…

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : रफ़ाइल अलबर्ती

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