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टिड्डी-दल

tiddi-dal

चिंतामणि बेहेरा

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और अधिकचिंतामणि बेहेरा

    टिड्डी-दल के घेरों से

    मनुष्य-फूल को बचाना होगा

    बचानी पड़ेगी मानवता की फसल

    मनुष्य का सूर्यमुखी मन

    सस्मित और सुविमल शस्य

    आज आकाश-प्रांतर में

    जीवन के सब्ज़ बंदरगाह में

    हरित केदार में और मनुष्य के आलोक मंदिर में

    उसी टिड्डी-दल ने फैलाए हैंअपने ध्वंसकारी पंख, और

    लहू चूसने के लिए खोला है अपना मुख

    टिड्डी-दल के विनाश के हेतु

    किया है खेत-मिट्टी ने आयोजन

    मिट्टी का मनुष्य अगर चाहता है बचना इस मिट्टी पर

    यदि चाहता है मानव-समाज अपने अस्तित्व की रक्षा

    करके मनुष्य का जय-गान

    उगाकर इस धरती में फसल

    प्राण में भरकर

    अग्नि-कण, मानवता, मुक्ति और ऐक्य-भाव

    तो मारने को टिड्डी-दल आज

    हे सखा, शीघ्र आयोजन करो।

    टिड्डियों का वंश निर्मूल करना पड़ेगा

    निर्मूल करना पड़ेगा लहलहाते हुए खेतों के शत्रु को

    देश-देश में इस विश्व के विस्तीर्ण आकाश में।

    तब तो आएगी मुक्ति

    धरती के आलोक में, वायु में

    मुक्त होगी मानव-फसल

    विकसित होगा सारे विश्व में

    सूर्यमुखी जीवन का फूल।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 69)
    • रचनाकार : चिंतामणि बेहेरा
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1956

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