तस्वीर
बहुत पहले सिर्फ़ आसमान था जो कई रंगों में बदलता रहता था। उसके नीचे बादल दौड़ते थे। फिर घास उगी और किसी चिड़िया के बोलने की आवाज़ आई। कहीं से धीमी बाँसुरी सुनाई दी। रात में पहली बार तारे प्रकट हुए और बहुत पास आ गए ताकि हम उन्हें छू सकें। कभी-कभी वे हमसे खेलते और हमारी आँखों में प्रवेश करके चमकने लगते। उस समय पेड़ों के नाम नहीं थे और पत्थर अभी-अभी जन्मे बच्चों की तरह सोए रहते थे। रात को कुछ रोशनियाँ जलतीं जिनके बारे में विश्वास था कि वे आनेवाले संकटों को भगा देती हैं। अब यह सब हमारी स्मृति में है। छाते की तरह तना आसमान दूर टँके तारे अपनी जगह स्थिर पेड़ और चिड़ियाँ जो उड़ती नहीं हैं और पत्थर जिनका बचपन ख़त्म हो चुका है। एक फ़्रेम में जड़ी यह हमारी प्रिय तस्वीर है। रात में चमकती रोशनियों के बारे में हम कहते हैं वे हमारे गाँव की आँखें हैं।
- रचनाकार : मंगलेश डबराल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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