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ताले के लिए

tale ke liye

प्रतीक ओझा

प्रतीक ओझा

ताले के लिए

प्रतीक ओझा

और अधिकप्रतीक ओझा

    अँधेरे से भरे कमरे के दरवाज़े की साँकल पर जीवित बने रहने का शाप भोगता अटका है जीवन, रोशनी की पहली किरण ख़ातिर एक आँख टिकी है ज़मीन पर चलती चींटियों के ऊपर, कपड़े कुतरते चूहों पर घूम रही है, किताबों में घुसती सीलन में रही है डूब, उद्देश्यहीन।

    अब जबकि यह पूरा जीवन ही सिर्फ़ जीते रहने पर शाप है, अकर्मण्य होता जा रहा हूँ, सिर्फ़ लेटा हूँ, लटका हूँ साँकल पर, उम्मीद के नाउम्मीद होने तक, ढो रहा हूँ एक अकेलापन, किसी ब्लैक होल की तरह सब कुछ निगलते हुए।

    मेरे ही ऊपर, मुझसे ही निकला लाल रोग परतों की तरह चढ़ रहा, पैर की पहली उँगली, जाँघ का पूरा साम्राज्य उसके हवाले है, एक दिन पेट होगा क़ब्ज़े में उसके, किसी दिन गले तक भी होगा उसका क़ब्ज़ा और सबसे अंत में मुँह में भरा मिलेगा, ठसा-ठस्स, मुझे और अधिक शापित करते हुए।

    मेरे सतत दुःख की सूनी आँख, एक बूँद रुदन तक को शापित, एक शब्द विलाप तक को बाधित, खो देगी अपना प्रकाश, नहीं देखा जा सकता और दुःख, और नहीं जिया जा सकता जीवन, भले ही यह जीने के लिए हो, अस्वीकृत करता हूँ बाक़ी का बचा हुआ, देता हूँ दान...

    सुना है मिथकों की परंपरा में जितना बड़ा रहा शाप, उससे भी बड़ा दिया गया दान, मैं बड़े शाप पर छोटा दान दे, कहाँ मुक्त होऊॅंगा।

    शापित ही रहेगी सतत दुख की सूनी आँख, उतनी ही पीड़ा में होगी जितनी पीड़ा उस घोड़े को है जिसकी दुम में आग लगी हो और उसे पानी मिले, उस हाथी को जो जीवन भर पार कर सका थार का मरुस्थल और प्यासा मारा, उस बच्चे को जिसे खेलना पसंद था पर आजीवन करता रह गया मज़दूरी और उस आदमी को जो सिर्फ़ इसलिए मारा गया कि उसे कभी नहीं मिला प्रेम, किए गए प्रेम के बदले इस बहुत अधिक अस्त-व्यस्त दुनिया में अधिक ही रहा दुःख का विवरण, हमेशा जितना भी दिखता कम लगता।

    अधिक विवरण, अधिक दुःख नहीं दिखा पाता। ही कम विवरण में अधिक भर जाने से दिख जाता है भरा हुआ दुःख, वह तो घटित होता रहता है, पन्नों के दूसरी तरफ़, विवरणों के इस पार, कठिन से कठिनतर, अधिक से अधिकतम होता रहता है उसका भार—जीवन के पृष्ठ पर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रतीक ओझा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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