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हलधर

सुरेन्द्र झा 'सुमन'

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और अधिकसुरेन्द्र झा 'सुमन'

    (1)

    नील चीर मण्डित ओ, सहजहिँ अहाँक नीलम कान्ति

    दमन हेतु उठबथि हर ओ, व्रत अहँक अहिंसा-शान्ति

    यमुना जल कर्षथि कोपे, अहँ दये नहरिसँ पानि

    दुर्योधन-संगी ओ, चलइत अहाँ धर्महिक बानि

    ओम्हर मंदिर कादम्बरी, एम्हर कादम्बिनि रस-कूप

    कृष्ण-सहोदर छथि, सहजहिँ कृष्णे अहँक स्वरूप

    हुनक रेवती प्रिया हन्त! भदवा धरि बारलि एक

    आर्द्रां सँ स्वाती धरि अनुगामिनी अहाँक अनेक

    छी युग-युगक अहाँ हलधर, छला द्वापरक अन्त

    तुलना अहँक कतयसँ पौता, लागल एक 'परन्तु'—

    बलराम स्वयं, अहाँक छथि निर्बल केर बल राम

    इन्द्र-प्रस्थ धरि हुनक हुकूमति, खेतहु अहाँ गुलाम

    (2)

    जखन अकाल-ग्रस्त जन, जोतय यज्ञ-वाट, हर लेल

    सीता उपजा आनि अपन घर जनक जगमगा देल

    काल-अकाल नियमसँ चलबी खेत-खेत हर नित्य

    घर-घर अन्नपूर्णा बाँटब धन्य अहँक अछि कृत्य

    त्रेता केर हलधर भोगक सङ योग कयल निर्वाह

    किन्तु अहँक स्वपनहु भोगमे हे! योगी हरवाह!

    समता अहँक कतयसँ करता जनकपुरक श्रीमान्?

    किन्तु विदेह वैह कहबै छथि, माटिक अहाँ किसान!

    धरती-सुत! अही कवितासँ हरित-भरित संसार

    गढ़ि आखर दस-पाँच धन्य कवि, कहबी अहाँ गमार!

    जे अणु गढ़ि, विध्वस्त करथि जग, धन्य हुनक विज्ञान!

    कण-कण आविष्कार जीव-हित अहि तिरस्कृत ज्ञान!

    भूमि-फलक पर दूर क्षितिज धरि शस्यक चित्र महान!

    हल-तूली अछि सफल अहँक हे कलाकार! रुचिमान!

    स्रोत :
    • पुस्तक : रचना संचयन (पृष्ठ 34)
    • संपादक : चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’/ शंकरदेव झा
    • रचनाकार : सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2012

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