धूप तो हमेशा रहती है

dhoop to hamesha rahti hai

अजीत रायज़ादा

अजीत रायज़ादा

धूप तो हमेशा रहती है

अजीत रायज़ादा

और अधिकअजीत रायज़ादा

    एक महीने से

    घर-आँगन, गली-मुहल्ले, गाँव-शहर को

    तरबतर करती हुई बारिश

    अचानक थम गई

    मेरे मुँह से निकला—

    धूप निकल आई।

    भीतर से आवाज़ आई—

    धूप तो हमेशा रहती है, कहीं जाती नहीं

    आदमी चाहता है बरसात हो

    भर जाएँ नदी-नाले-तालाब

    धरती ओर जंगल ओढ़ लें

    हरियाली की चादर

    फ़सलें लहलहा उठें

    पीने को मिले भरपूर पानी

    इसीलिए बरसात होती है

    प्यासे जीवन को तृप्त करने के लिए

    बादलों से ऊपर उठकर देखो

    धूप तो हमेशा रहती है

    बादल अपना काम करता है, सूरज अपना

    एक का काम बरसना, दूसरे का चमकना

    यदि आदमी भी सीख ले

    जीवन में सामंजस्य बिठाना

    दुःख-सुख से ऊपर उठना

    तो पाएगा कि

    धूप तो हमेशा रहती है

    आते-जाते रहते हैं

    केवल बादल।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अजीत रायज़ादा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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