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सुनना

sunna

रविशंकर उपाध्याय

अन्य

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और अधिकरविशंकर उपाध्याय

    जब मैं नहीं सुन रहा था तुम्हें

    तब मेरी कविता सुन रही थी

    जब मैं ठहर भी जाता हूँ

    तब भी गतिशील रहती है कविता

    मेरे भीतर

    अब मैं कई बार सुनना चाहता हूँ तुम्हें

    मगर तुम एक गहरी ख़ामोशी में डूबी हुई हो

    अब जब भी कहीं होती है हलचल

    मेरे कान खड़े हो जाते हैं

    श्रवणेंद्रियाँ सक्रिय हो जाती हैं

    पंछियों की हर चहक के साथ

    उतरने लगती हो मेरी आत्मा में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उम्मीद अब भी बाक़ी है (पृष्ठ 59)
    • रचनाकार : रविशंकर उपाध्याय
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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