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स्थायित्व का भ्रम

sthayitv ka bhram

शैरिल शर्मा

शैरिल शर्मा

स्थायित्व का भ्रम

शैरिल शर्मा

और अधिकशैरिल शर्मा

    हम जानते हैं कि

    हम जीवन की स्मृति में दर्ज,

    एक घटना भर हैं

    जो जीवन

    द्वारा बार-बार दोहराई जाएगी।

    फिर भी हम चलने लगे

    बिना किसी निश्चित दिशा के

    उस ही एक वादे की क़सम पर

    एक पेड़ की तरह

    जो हवा की टहनी पकड़ कर

    थोड़ी देर ही सही

    पर झुकता तो है।

    हमने साथ

    कभी कोई जगह नहीं चुनीं

    वे सारी जगहें धूल बनकर

    अपनी एक गंध लिए

    हमारे भीतर धीरे-धीरे

    उतरती गई

    और वे सभी प्रार्थनाएँ

    जो वंचित रहीं हमारी पुकार से

    फिर फिर कर सुनायी दीं

    जीवन के नाजु़क मोड़ पर

    आँखों के भाषाई अनुवाद में।

    हम उन रास्तों से हमेशा कतराते रहे

    जहाँ जाना सर्वाधिक ज़रूरी था

    और सबसे अधिक समय हमने वहाँ बिताया

    जहाँ रुकना नियति ने निरर्थक माना।

    हमारे समय की सबसे भारी विडंबना

    यह रही

    कि हमने जिन्हें सबसे ज़्यादा अपना माना

    वे सबसे कम हमारे साथ पाए गए।

    हम स्थायित्व के भ्रम में जीते रहे

    और परिवर्तन को ही घर कहते रहे

    हम जिनसे कभी ठीक से मिले तक नहीं

    उनके लिए भीतर एक अपनापा छाता रहा

    और जिनसे साझेदारी रही

    वे अजनबीयत की परतों के नीचे दफ़्न होते रहे।

    फिर एक दिन हमें ये मानना ही पड़ा

    कि हम जीवन को नहीं

    जीवन हमें जीता रहा

    और हम जीने की चाह लिए

    चुपचाप भीतर ही भीतर मरते रहे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शैरिल शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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