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सृष्टि का चक्र

srishti ka chakr

नीरज नीर

अन्य

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नीरज नीर

सृष्टि का चक्र

नीरज नीर

और अधिकनीरज नीर

    स्त्री ने

    अथक श्रम से

    ठेल-ठालकर

    दिन को पहुँचाया

    सूरज की छाया में

    और उसे एक किनारे पर रख

    दो पल के लिए

    लगी सुस्ताने…

    पुरुष ने खींच लिया उसे

    पलक झपकते ही

    अँधेरे के भीतर और

    उड़ाने लगा तितलियाँ

    उसकी देह पर…

    स्त्री ने समाज की गाँठ को बचाने की

    अपनी ज़िम्मेवारी का निर्वहन किया

    और ढीली कर दी

    अपनी अँगुलियों से कमर की गाँठ...

    दिन उसकी हाथ से फिसलकर

    फिर से गया वापस...

    स्त्री जुट गई पहुँचाने में

    फिर से उसे

    सूरज की छाया में...

    सजा दिया अपनी वेदना को

    सुबह के गुलदान में,

    इस बात को जानते हुए

    कि उसकी महक

    फिर से आमंत्रित करेगी

    पुरुष के आदिम राग को...

    अनंत काल से स्त्री इसी तरह से

    चला रही है सृष्टि का चक्र

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीरज नीर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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