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कोइ मंदिर मठ ढूंढ़इ

कोइ मस्जिद हेरइ

कोइ गुरुद्वारा घूरइ

कोइ गिरिजाघर मा गिड़िगिड़ाइ

तनि दर्सु देतिउ

तनि नजरि फेंकतिउ

तनि सीध होतिउ

तनि उजेरु करितउ

मुला वहि का

कउनउ पाइसि

वहु सून्य मा बिचरइ

कउनउ स्वाचइ

सून्य मन के भितरइ

वहु बहे मा रमइ

कोइ असली आँखी तउ ख्वालइ

वहु अपनेइ मिलइ

वहु कण-कण में दिखइ

कहुँ झर-झर

झरना ते झरइ

लहरिन मा लहरइ

कहुँ भर-भर

पुष्य-पुनरबस बरसइ

वहु सिर्फ मंदिर की मूर्तिय मा नहिन

वहु हर ईंट-पत्थर मा

दर-दर मा

खर-खर मा

वहु हर आदमी मा रहइ

अदमी आदमी का छरइ

तउ वहिका जिउ जरइ

वहु हर चिरिया मा चहकइ

आदमी चिरिया का खाइ

तउ वहु कस दिक्काइ

वह हर जीव के भीतर

चाहइ बटेर चाहइ तीतर

जो सचाई का पकरइ

वहु वहे का मिलइ।

स्रोत :
  • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 108)
  • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
  • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
  • संस्करण : 1991

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