सिस्टम
आप इतनी दूर से चलकर आए हैं तो नि:संदेह आपका काम होगा। आज नहीं तो कल और कल नहीं तो परसों होगा। कल से मेरा मतलब ठीक मंगलवार से नहीं है और परसों का अर्थ आप बुधवार भी मत समझना। आपका काम नरसों भी हो सकता है या उसके बाद किसी दिन! क्या पता महीना भर लग जाए। दो महीने भी लगें तो ताज्जुब नहीं। कई बार तो पूरा साल लगा है। झूठ क्यों बोलूँ, कई बार दो-दो साल भी लगे हैं। तीन और चार साल लगने के उदाहरण भी कम नहीं।
मगर एक बात निश्चित है कि काम तो हो ही जाता है। हमारी तो हमेशा से यही कोशिश रहती है कि काम जल्दी से जल्दी हो। जल्दी से जल्दी का मतलब आप को क्या समझाएँ, वह स्वत: स्पष्ट है। देर लग जाए तो भी आदमी को घबराना नहीं चाहिए। एक ही उद्देश्य उसके सामने होना चाहिए कि काम कराना है, जिसके लिए धैर्य की आवश्यकता होती है।
काम होने तक आपको मौत तो नहीं आएगी मगर मृत्यु जीवन का अटल सत्य है, अतः यह सोचकर कोई भी इंसान इत्मीनान से मर सकता है कि वह मर भी गया तो क्या, उसका काम तो हो ही जाएगा।
और एक बार मान लें कि तब भी नहीं हुआ तो आप वहाँ से लौटकर यहाँ आने वाले तो हैं नहीं। लेकिन जब तक यह सिस्टम है और इसमें मैं हूँ। इस बात की पक्की खातरी रखें कि हमारे यहाँ देर है, अंधेर नहीं। वैसे भी जहाँ देर हो जाती है, अंधेर की ज़रूरत नहीं रह जाती। झऔर काम तो जी आप अच्छी तरह जानते हो कि हो ही जाता है।
- रचनाकार : विष्णु नागर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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