श्री यात्रीजीक प्रति : मैथिलीक उक्ति
shri yatrijik prati ha maithilik ukti
हे हमर सन्तान!
बीच तिरहुत मध्य तोहर छौह जन्मस्थान।
जतय पूजित होइ छथि जे क्यो अबै छथि आन।
जतै बाड़िक तीत पटुआ घरक प्रतिभावान।
जतै जीवित कलाकारक ह्वैछ नहि सम्मान।
ताहि ठाम करैत ककरा पर छहक तों मान।
रहि गेला तों नेना केवल, भेल छौ नहि ज्ञान॥
हे हमर सन्तान!
जौ चटर्जी वा बनर्जी बोस वा सरकार।
जन्म रहितहुँ भेल कोनो बंग केर परिवार।
होइतहु सर्वत्र तोहर एखन जयजयकार।
भेल रहितह मातृभूमिक तों एखन श्रृंगार।
किन्तु कतबो शारदा तोरा देथुन्ह वरदान।
लेखनी सँ झड़ौ निर्झरिणी सुधाक समान।
आन प्रान्तक लोक सभ कतबो करौ स्तुतिगान।
स्वजन परिजन किन्तु अप्पन, मूनि लेतौ कान।
हे हमर सन्तान!
लाख देश-विदेश घूमह, पाबि नित सत्कार।
लाख क्रान्तिक गीत गाबह, दूत बनि साकार।
लाख जागृति केर फूकह शंख बारंबार।
लाख कविता मध्य तों वर्षा करह अंगार।
किन्तु अपना घरक लेखें तो प्रचण्ड बताह।
पंडितक लेखें तोहर रचना परम मरखाह।
मातृभूमिक छोह हो तँ नित्य गंजन खाह।
जौं जिबै चाहैत छह तँ सोझ दिल्ली जाह।
हौ, हड़ाही मे कड़ाही चढ़क नहि अनुमान।
एतय सभ बाइस पसेरी छैक नवका धान।
हे हमर सन्तान!
छै टका लाखो जहाँ मैथिलीक कोषागार।
जाहि सँ साहित्य केर होइतै कते विस्तार।
ततै खेदित होइछ मन ई देखिकेँ व्यवहार।
जाय 'बलचनमा' एतै सँ पाबि कैं दुत्कार।
आर स्वागत होइ ओकर जा कैं प्रयागक द्वार।
आर रतिनाथक ओहन काकी यशक आगार।
खसि कय भागथि इलाहबाद केर बाजार।
देखि ई न विदीर्ण होइ छनि, जनिक हृदय पाषाण।
ताहिठाम करैत छह तों व्यर्थ की ई मान।
जखन मरि जैबह तखन तोरो हेतह सम्मान।
ठाम-ठाम सभाक द्वारा हेतह शोकक गान।
ओ तरौनी मध्य तोरो मूर्त्ति हेतौ ठाढ़।
और वंशजमे उमड़तह स्नेह अतिशय गाढ़।
आ जयन्ती मध्य तोहर हेतह यश केर गान।
किन्तु एखन करह ताबत मूक तों विषपान॥
हे हमर सन्तान!
- पुस्तक : हरिमोहन झा रचनावली खण्ड-4 (पृष्ठ 32)
- रचनाकार : हरिमोहन झा
- प्रकाशन : जनसीदन प्रकाशन
- संस्करण : 1999
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