शोणितायल जिनगी
shonitayal jingi
हँ, ओ जीबैत अछि एखन
बाँचल छैक ओकरामे प्राण
पीबैत अछि ओ शोणितायल जिनगीक साँस
तांडवक आयोजनमे ठाढ़
बरछीसँ गंथायल ओकर शरीर
कोनो जागृत प्रतीक्षामे
सुरूजसँ मिलबैत अछि आँखि
आ, गनैत अछि आकाश धरि पसरल
हेंजक हेंज विपन्न मनुख
पढ़ैत अछि ओकर अन्तहीन मौन भाषा
जे रचि रहल अछि साहित्य
जकर एकहक आखर अछि आक्रांत
आ, ठाढ़ करत एकटा युद्ध
ओ जनचेतनाक प्राणवायु बनि
सृष्टिक नवजीवनक आँगनमे
कहियो पकड़ि लेत घेंट
एकटा टाक्सीकेटेड पूँजीवादी व्यवस्थाक।
- पुस्तक : फूजल आँखिक स्वप्न (पृष्ठ 17)
- रचनाकार : रोमिशा
- प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
- संस्करण : 2019
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