एक शिक्षक ने प्रश्न किया : शिक्षा क्या है?
अलमुस्तफ़ा ने उत्तर दिया :
तुम्हारे ही भीतर तुम्हारे ज्ञान के उषाकाल में जो ज्ञान सोया-सा रहता है, उसे ही
जागरित करने के अतिरिक्त शिक्षक कुछ नहीं कर सकता।
मंदिरों की छाया में बैठकर शिष्यों को विद्या-दान देने वाले ज्ञानी भी केवल अपनी
श्रद्धा और प्रेम का ही अंश अर्पित कर सकते हैं, अपने ज्ञान का नहीं।
यदि वे सच्चे सेवक हैं तो वे तुम्हें अपने ज्ञान-कोष्ठ में बलात् प्रविष्ठ नहीं कराएँगे,
बल्कि वे तुम्हें तुम्हारे ही अंतर्मन के द्वार तक जाने का मार्ग-दर्शन करेंगे।
ज्योतिषी केवल आकाश-स्थित रहस्यों के संबंध में तुमसे अपने ज्ञान की चर्चा
करेगा—तुम्हें ज्ञान की शिक्षा नहीं दे सकेगा।
गायक विश्व की दसों दिशाओं में व्याप्त स्वर-लहरी को तालबद्ध करके तुम्हारे सम्मुख
रख सकता है, किंतु वह तुम्हें ताल-ज्ञान देने के अनुकूल श्रवण-शक्ति और गीतों का वह
स्वर नहीं दे सकता जो संगीत में बंधता है।
गणना-शास्त्र में निष्णात विद्वान् केवल तुमसे संख्या और मापदंड-संबंधी शिक्षा
की चर्चा ही कर सकता है, तुम्हें गणित का गूढ़ ज्ञान नहीं दे सकता।
क्योंकि एक मनुष्य की अंतर्दृष्टि दूसरे मनुष्य को अपनी ज्ञान-चक्षु उधार नहीं दे
सकती।
और जिस प्रकार ईश्वर की निगाह में प्रत्येक व्यक्ति अकेला है, उसी प्रकार ईश्वर के
ज्ञान में भी अकेला ही रहता है।
- पुस्तक : मसीहा
- रचनाकार : ख़लील जिब्रान
- प्रकाशन : राजपाल एंड संस
- संस्करण : 2016
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