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शेष जगहें

shesh jaghen

मयंक यादव

अन्य

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मयंक यादव

शेष जगहें

मयंक यादव

और अधिकमयंक यादव

    दुनिया भर की कई जगहें गया हूँ 

    अपनी ख़ुद की पहचान बनाई। 

    लोग मान गए हैं समूचे विश्व में मेरा लोहा 

    मानते हैं कि मैं बदलाव ला सकता हूँ। 

    देहात लौटता हूँ, तो लोग आदर करते हैं 

    चौखट पर पहुँचने से पहले कुर्सी-मेज़ ला कर रख देते हैं। 

    मैं बेहद ख़ुश होता हूँ 

    कि दादा या पिता से नहीं लोग मुझे 

    मेरे नाम से जानते हैं। 

    जो कि ग़लत है, पर मुझे इसका कत्तई मलाल नहीं। 

    पर आज जब बरसों बाद ननिहाल गया 

    और लोगों ने मुझे 

    मेरे नाम से पुकारा, तो मुझे दुःख हुआ। 

    कितनी ही जगहें शेष थी 

    जहाँ मैं तुम्हारे नाम से जाना जाता था 

    जहाँ मेरी शक्ल सिर्फ़ तुमसे मिलती थी

    मेरी क़द-काठी सिर्फ़ तुम सी थी। 

    मेरी वहाँ कोई स्वतंत्र पहचान नहीं थी और तब मैं इस पहचान से 

    ज़्यादा ख़ुश था। 

    आज सोचता हूँ तो 

    ग्लानि से भर उठता हूँ,

    मैंने महान क्यो बना?

    कितनी ही जगहे शेष थी 

    जहाँ तुमसे मेरी पहचान थी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मयंक यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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