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शहर

shahr

प्रेमा झा

और अधिकप्रेमा झा

    सब पेट भरते और

    ज़िंदा रहते हैं इस शहर में

    खंडहर-सी ख़ामोशी लेकर

    मौत की सड़कों पर

    खुला घूमते हैं ये लोग

    इन्हें चाभियों की फ़िक्र नहीं है

    आती तेज़ बसों, ट्रेनों, और

    क्रेनों का डर भी नहीं है

    ये हर शाम ख़ुद को दफ़नाते

    और दिन को अपनी-अपनी

    कब्रों से बाहर निकल आते हैं

    यह शहर मौत का कुआँ है

    यहाँ एक लाल बाग़ भी है

    जहाँ रेडीमेड आशिक़ी का खेल चलता है

    लाल बाग़ में नीली लाइटें जलती हैं

    एक आदमी डँडा और घड़ी लेकर घूमता रहता है

    वहाँ की आशिक़ी वक़्त की बड़ी पाबंद हैं

    रात को स्याह सड़कों पर

    जर्द पड़ती ख़्वाहिशों का

    कफ़न अपने ऊपर ओढ़ लेते हैं

    और

    चल देते हैं किराए के घरों में

    उधार की नींद और सेंध मारते सपने में

    कभी-कभी इस शहर में

    लोग मौत से पहले भी मर जाते हैं।

    और

    भटकते रह जाते हैं अतृप्त रूहों की तरह

    रेड लाइट पर

    कि यकायक हॉर्न बजने लगता है

    और

    शहर ज़िंदा होने का सबूत देता

    ये शहर रात को ज़िंदा रहता और

    सुबह मर जाता है।

    डेवलपमेंट के ब्लैक होल में

    चला गया है शहर

    नियत, नितांत, निस्सहाय

    निरुत्तर हो गया है शहर!

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रेमा झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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