सन् 1992

san 1992

जब मैं पैदा हुआ

अयोध्या में ढहाई जा चुकी थी एक क़दीम मुग़लिया मस्जिद

जिसका नाम बाबरी मस्जिद था

ये एक महान सदी के अंत की सबसे भयानक घटना थी

कहते हैं पहले मस्जिद का एक गुंबद

धम्म् की आवाज़ के साथ ज़मीन पर गिरा था

और फिर दूसरा और फिर तीसरा

और फिर गिरने का जैसे अनवरत क्रम ही शुरू हो गया

पहले कीचड़ में सूरज गिरा

और मस्जिद की नींव से उठता ग़ुबार

और काले धुएँ में लिपटा अंधकार

पूरे मुल्क पर छाता चला गया

फिर नाली में हाजी हश्मतुल्लाह की टोपी गिरी

सकीना के गर्भ से अजन्मा बच्चा गिरा

हाथ से धागे गिरे, रामनामी गमछे गिरे, खड़ाऊँ गिरे

बच्चों की पतंगें और खिलौने गिरे

बच्चों के मुलायम स्वप्नों से परियाँ चीख़ती हुई निकलकर भागीं

और दंतकथाओं और लोककथाओं के नायक चुपचाप निर्वासित हुए

एक के बाद एक

फिर गाँव के मचान गिरे

शहरों के आसमान गिरे

बम और बारूद गिरे

भाले और तलवारें गिरीं

गाँव का बूढ़ा बरगद गिरा

एक चिड़िया का कच्चा घोंसला गिरा

गाढ़ा गरम ख़ून गिरा

गंगा-जमुनी तहज़ीब गिरी

नेता-परेता गिरे, सियासत गिरी

और इस तरह एक के बाद एक नामालूम कितना कुछ

भरभरा कर गिरता ही चला गया

“जो गिरा था वो शायद एक इमारत से काफ़ी बड़ा था...”

कहते-कहते अब्बा की आवाज़ भर्राती है

और गला रुँधने लगता है

इस बार पासबाँ नहीं मिले काबे को सनमख़ाने से

और एक सदियों से मुसलसल खड़ी मस्जिद

देखते-देखते मलबे का ढेर बनती चली गई

जिन्हें नाज़ है हिंद पर

हाँ, उसी हिंद पर

जिसकी सरज़मीं से मीर-ए-अरब को ठंडी हवाएँ आती थीं

वे कहाँ हैं?

मैं उनसे पूछना चाहता हूँ

कि और कितने सालों तक गिरती रहेगी

ये नामुराद मस्जिद

जिसका नाम बाबरी मस्जिद है

और जो मेरे गाँव में नहीं

बल्कि दूर अयोध्या में है

मेरे मुल्क के रहबरों और ज़िंदा बाशिंदों बतलाओ मुझे

कि वो क्या चीज़ है जो इस मुल्क के हर मुसलमान के भीतर

एक ख़फ़ीफ़ आवाज़ में जाने कितने बरसों से

मुसलसल गिर रही है

जिसके ध्वंस की आवाज़ अब सिर्फ़ स्वप्न में ही सुनाई देती है!

स्रोत :
  • रचनाकार : अदनान कफ़ील दरवेश
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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