Font by Mehr Nastaliq Web

सपन होता है सुनहला

sapan hota hai sunahla

खुशीराम वाशिष्ठ

अन्य

अन्य

खुशीराम वाशिष्ठ

सपन होता है सुनहला

खुशीराम वाशिष्ठ

और अधिकखुशीराम वाशिष्ठ

    सपन होता है सुनहला है मगर वह सपन ही तो

    वारुणी जितनी पियो तुम वह बढ़ाती तपन ही तो।

    जगमगाते तारकों का नील नभ ही तो निलय है

    मृत्यु कहते हैं जिसे हम वह घड़ी भर शयन ही तो।

    मृत्तिका के यह चषक साबित हुए हैं बहुत कच्चे

    चाँदनी हो मधुर कितनी ओस का पर कफ़न ही तो।

    क्या हुआ यदि शून्य में मिल जाएगा अस्तित्व मेरा

    बिछड़ना कहते जिसे हम वह किसी का मिलन ही तो।

    यहाँ मिट-मिट कर रहा बनना सदा व्यापार अपना

    तुम जिसे मिटना समझते वह किसी का सृजन ही तो।

    वायु को कब कौन बंदी रख सका है इस भुवन में

    साँस का आधार कितना है भला वह पवन ही तो।

    बुझ गया दीपक किसी के मृदुल कर से फिर जलेगा

    तुम जिसे निर्वाण कहते है भला वह ज्वलन ही तो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तीन पीढ़ियाँ साठ कविताएँ (पृष्ठ 33)
    • रचनाकार : बोधि प्रकाशन
    • प्रकाशन : खुशीराम वाशिष्ठ
    • संस्करण : 2024

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY