जार्जिया के गिरि-टीलों को रात्रि-तिमिर ने घेरा है
jarjiya ke giri tilon ko ratri timir ne ghera hai
अलेक्सांद्र पूश्किन
Alexander Pushkin

जार्जिया के गिरि-टीलों को रात्रि-तिमिर ने घेरा है
jarjiya ke giri tilon ko ratri timir ne ghera hai
Alexander Pushkin
अलेक्सांद्र पूश्किन
और अधिकअलेक्सांद्र पूश्किन
जार्जिया के गिरि-टीलों को रात्रि-तिमिर ने घेरा है
औ' अरागवा नदी सामने कल-छल शोर मचाती है,
बेशक दु:ख में डूबा-डूबा, पर हल्का मन मेरा है
क्योंकि तुम्हारी याद उदासी लाती, मन तड़पाती है।
एक तुम्हारे, सिर्फ़ तुम्हारे कारण व्यथा उदासी है
और न कोई पीड़ा मुझको, चिंता नहीं सताती है,
फिर से मेरी तप्त आत्मा पुनः प्यार की प्यासी है
क्योंकि प्यार के बिना रह सके, हाय, न यह कर पाती है।
- पुस्तक : अलेक्सान्द्र पूश्किन चुनी हुई रचनाएँ (खंड-1) (पृष्ठ 25)
- रचनाकार : अलेक्सान्द्र पूश्किन
- प्रकाशन : प्रगति प्रकाशन, मास्को
- संस्करण : 1982
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