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सच, सच की तरह था

sach, sach ki tarah tha

विजय बहादुर सिंह

अन्य

अन्य

विजय बहादुर सिंह

सच, सच की तरह था

विजय बहादुर सिंह

और अधिकविजय बहादुर सिंह

    सच

    सच की तरह था

    झूठ भी था झूठ की तरह

    फिर भी मिलते-जुलते-से थे

    दोनों के चेहरे

    दोनों में थी गहरी समझदारी

    समझौता था परस्पर

    एक दूसरे के ख़िलाफ़ होकर

    थे दोनों एक-दूसरे के साथ

    राह निकाला करते थे मिलकर

    सच की भी अपनी दुकानदारियाँ थीं

    मुनाफ़े थे झूठ के भी अपने

    स्रोत :
    • पुस्तक : पतझर की बाँसुरी (पृष्ठ 82)
    • रचनाकार : विजय बहादुर सिंह
    • प्रकाशन : रामकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 1993

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