सब कुछ कह लेने के बाद

sab kuch kah lene ke baad

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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सब कुछ कह लेने के बाद

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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    सब कुछ कह लेने के बाद

    कुछ ऐसा है जो रह जाता है,

    तुम उसको मत वाणी देना।

    वह छाया है मेरे पावन विश्वासों की,

    वह पूँजी है मेरे गूँगे अभ्यासों की,

    वह सारी रचना का क्रम है,

    वह जीवन का संचित श्रम है,

    बस उतना ही मैं हूँ,

    बस उतना ही मेरा आश्रय है,

    तुम उसको मत वाणी देना।

    वह पीड़ा है जो हमको, तुमको, सबको अपनाती है,

    सच्चाई है—अनजानों का भी हाथ पकड़ चलना सिखलाती है,

    वह यति है—हर गति को नया जन्म देती है,

    आस्था है—रेती में भी नौका खेती है,

    वह टूटे मन का सामर्थ है,

    वह भटकी आत्मा का अर्थ है,

    तुम उसको मत वाणी देना।

    वह मुझसे या मेरे युग से भी ऊपर है,

    वह भावी मानव की थाती है, भू पर है,

    बर्बरता में भी देवत्व की कड़ी है वह,

    इसलिए ध्वंस और नाश से बड़ी है वह,

    अंतराल है वह—नया सूर्य उगा लेती है,

    नए लोक, नई सृष्टि, नए स्वप्न देती है,

    वह मेरी कृति है

    पर मैं उसकी अनुकृति हूँ,

    तुम उसको मत वाणी देना।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 102)
    • रचनाकार : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1989

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