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साँप

saanp

आकाश वर्मा

अन्य

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और अधिकआकाश वर्मा

    साँप

    चुपचाप जंगल से निकलकर

    शहर की ओर जाएगा

    पीछे उसके पैरों के निशान उगेंगे

    मगर इंसानो की तरह

    लेकिन पहचाने नहीं जा सकेंगे कभी भी

    वह गलियों-गलियों जाएगा

    और दीवारों में रेंगता रहेगा

    वह सबसे बताएगा कि जंगल में आग लग चुकी है

    कि सभी त्रस्त हैं वहाँ

    आने वाले समय से भयग्रस्त हैं

    अपनी आँखों की तश्वीरों से साबित करेगा

    कि हरे पत्ते सूख गए हैं

    कि मर गई हैं चिटियाँ

    उजड़ गए हैं घोसले

    वह बार-बार बताएगा कि

    बदली हवाओं का रुख़ ठीक नहीं है

    साँप

    जो कभी सभ्य नहीं माना गया

    जंगल से निकल कर शहर में बस जाएगा

    और

    नए ज़माने का सभ्य मान लिया जाएगा

    वह चुपके से

    बरसात की बूँदों में अम्लीय परिभाषा डालकर

    फुहारों के सभी सुख से वंचित कर देगा

    वह सिर्फ़ डराएगा

    सुनेगा कुछ भी नहीं

    धीरे-धीरे

    केवल सिर्फ़ विरोध करना सिखाएगा

    हल नहीं

    सदियों से बनी

    सभ्यता की नींव को अंत में बदल देगा

    वह साँप आख़िर में

    जंगल से निकल कर

    शहर को जंगल में तब्दील कर देगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकाश वर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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