रोटी

roti

वसीम अकरम

और अधिकवसीम अकरम

    कुछ ढूँढ़ रहा था वो लड़का

    बहुत देर से

    कूड़ेदान में इधर-उधर

    एक लगन

    एक जुनून से

    पूरी दुनिया से बेख़बर होकर।

    अचानक वो मुस्कुराया

    अपने हाथों में

    एक मैली-कुचैली, धूल में सनी

    रोटी के उस टुकड़े को देखकर

    जिस पर से

    किसी कुत्ते या किसी जानवर ने भी

    अपना लिखा हुआ नाम

    काट दिया था।

    शायद उसकी लगन

    उसका जुनून

    उस रोटी के टुकड़े पर

    अपना नाम लिखने के लिए था।

    वो उसी देश का लड़का है

    जिस देश में आज

    बड़े-बड़े रेस्तराओं में

    टेबुल पे रखे मेनू में से

    लोग ये तय करने में

    नाकामयाब हो जाते हैं

    कि क्या खाएँ

    और सामने वाले से कहते हैं

    जो पसंद हो वो मँगा लो।

    वो उसी देश का भविष्य है

    जिस देश में

    सर्वशिक्षा अभियान से लेकर

    बाल विकास योजनाओं के लिए,

    बाल यौनशोषण से लेकर

    बाल श्रम रोकने के लिए

    जाने कितनी

    सरकारी और

    ग़ैरसरकारी संस्थाएँ

    हर साल पश्चिमी देशों से

    अपने इस काम के लिए

    ढेर सारे पैसे

    और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार पाती हैं।

    क्या उसकी लगन

    उसके जुनून

    उसकी मेहनत का कोई मतलब नहीं

    जिसने उस रोटी पर

    अपना नाम लिख दिया

    जिस पर से

    किसी जानवर ने

    अपना लिखा हुआ नाम

    काट दिया था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : वसीम अकरम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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