Font by Mehr Nastaliq Web

रज़ा

raza

मनीषा कुलश्रेष्ठ

अन्य

अन्य

और अधिकमनीषा कुलश्रेष्ठ

    रज़ा आज भी पेंट करते हैं,

    एक प्रार्थना की तरह

    रंगीन-रंगहीन

    रचते हैं वृत्त और वर्ग

    अँधेरे उजालों के क्षितिज

    रँगते हैं

    सिरे जंगलों के

    मुहाने नदियों के

    अपनी अबोध मुस्कान से लिपट

    लेते हैं दुपहरिया नींद

    भोली-सी

    इधर

    हम बहस करते हैं

    बस बहस निरर्थक

    बिन रचे-बिन गहे

    फोड़ते हैं नींदें

    एक-दूसरे की

    तीखी चोंचों से

    खुट-खुट

    हम पढ़ते भी नहीं

    विचार भी नहीं करते

    विचारधारा पर रहते हैं

    बेचैन

    रज़ा आज भी रचते हैं

    सोते हैं अबोध नींद

    मुस्कुराते हैं नींद में

    उम्र गिलहरी उतर कर

    उनके कंधों से

    घूम आती है

    जंगल सतपुड़ा के

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीषा कुलश्रेष्ठ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY