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प्रलय पथ

prlay path

राजेश राजभर

अन्य

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राजेश राजभर

प्रलय पथ

राजेश राजभर

और अधिकराजेश राजभर

    भारत बंद—अब और नहीं…!

    ‘मानवता’ मर जाएगी,

    भूख जलेगी इंसानों में—

    इंसानों को खाएगी!

    शहर, खँडहर, बन जाएँगे

    मातम होगा मयख़ानों में,

    तब शासन क्या पहचानेगा,

    ‘भूख’ जगी है इंसानों में!

    सन्नाटों की भरी दुपहरी,

    होगा कोई शोर नहीं—

    भारत बंद—अब और नहीं।

    गाँव गली, फुलवारी, पनघट,

    मरघट, सब बन जाएँगे,

    धरती, अम्बर, नदी बसंत—

    किसका मन बहलाएगें,

    चाँद सितारों की बारिश में,

    भीगने वाला कोई नहीं

    भारत बंद—अब और नहीं।

    नर निराश बढ़ी व्याकुलता

    समय नहीं ‘प्रतिकूल’

    ‘असमंजस’ की आग धधगती—

    जलती चौबारों की धूल

    टूटती, बिखरती, सांसों पर,

    अब जन जन का ज़ोर नहीं—

    भारत बंद—अब और नहीं

    अँधकार की ‘आहट’ सुन

    चौकन्ना हो कर तैयारी,

    सीमाओं को तोड़ रही है—

    भूख, ग़रीबी, लाचारी,

    ‘प्रलय पथ’ पर खड़ी ज़िंदगी

    क्या जीवन का मोल नहीं—

    भारत बंद—अब और नहीं,

    ‘मानवता’ मर जाएगी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजेश राजभर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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