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प्रेम

prem

ममता जयंत

और अधिकममता जयंत

    भीतर गिरता है 

    एक विपुल प्रपात 

    नई पुरानी स्मृतियाँ बनकर 

    शून्य में उतरते एहसास स्मृतियों के पुल हैं 

    जिनसे गुज़रती हैं होकर तमाम तस्वीरें 

    सुनाई पड़ता है एक मधुर संगीत 

    जैसे बजती हैं धरा पर बूँदें

    जैसे झरती हैं ओठों से हँसी

    जैसे टपकते हैं दुख में आँसू

    जैसे गिरते हैं पतझर में पात

    सब गिरने टपकाने झरने के बाद भी 

    बचा रहता है प्रेम 

    कभी आँसू तो कभी 

    मुस्कान बनकर!

    स्रोत :
    • रचनाकार : ममता जयंत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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