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प्रेम

prem

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार

ख़लील जिब्रान

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और अधिकख़लील जिब्रान

     

    तब अल मित्र ने कहा—हमें प्रेम के बारे में बताओ।

    उसने अपना सिर उठाया और लोगों पर नज़र डाली, तो वे शांत हो गए। उसने
    कहना शुरू किया :

    प्रेम जब तुम्हें बुलाए, उसके पीछे चलने लगो। हालाँकि उसके तौर-तरीक़े सख़्त होते
    हैं, और फिसलन से भरे भी हैं। जब उसके पंख तुम्हें घेरने लगें, उनमें घुस जाओ। उसके
    भीतर छिपी तलवार तुम्हें घायल कर सकती है। जब वह कुछ कहे, उसका विश्वास कर लो।
    हालाँकि उसके शब्द तुम्हारे सपनों को चूर-चूर कर सकते हैं, जैसे उत्तर की हवा बग़ीचे
    को नष्ट कर देती है।

    प्रेम तुम्हें ताज भी पहना सकता है, और सूली पर भी चढ़ा सकता है। वह तुम्हारा
    विकास कर सकता है और तुम्हारी छँटाई भी कर सकता है।

    वह तुम्हारी ऊँचाइयों तक चढ़कर सूरज की रोशनी में लहराती तुम्हारी कोमलतम
    शाख़ाओं को दुलरा सकता है।

    तो वह तुम्हारी जड़ों में नीचे उतरकर ज़मीन में गड़ी उनकी मज़बूती को भी झकझोर
    सकता है।

    मकई की बालियों की तरह वह तुम्हें अपने में समेटकर रखता है।

    वह तुम्हें नंगा करने के लिए उन सबको तोड़ भी देता है।

    छिलकों से मुक्त करने के लिए वह तुम्हारी सफ़ाई भी कर देता है।

    फिर वह तुम्हें पीसकर सफ़ेद आटे में बदल देता है।

    अब वह तुम्हें तब तक गूँथता है, जब तक तुम बिलकुल मुलायम न बन जाओ।

    इसके बाद वह तुम्हें पवित्र अग्रि में सेंक कर पवित्र रोटी में बदल देता है, जिससे तुम
    परमपिता का पवित्र आहार बन सको।

    ये सब बातें तुम्हारे साथ प्रेम इसलिए करेगा जिससे तुम अपने हृदय के रहस्य जान
    सको, और वह ज्ञान पाकर जीवन के हृदय का अंग बन सको।

    लेकिन अगर तुम डर के कारण केवल प्रेम की शांति और सुख ही प्राप्त करना चाहो,
    तो अच्छा होगा कि अपनी नग्रता को ढँककर तुम प्रेम की चक्की के नीचे से चुप होकर निकल
    जाओ, और मौसम की उस सपाट दुनिया में पहुँच जाओ, जहाँ तुम हँस तो सकोगे
    लेकिन पूरी तरह नहीं, और रो भी सकोगे पर खुलकर नहीं रो सकोगे।

    प्रेम अपने अलावा और कुछ नहीं देता, और अपने को ही लेता है, और कुछ नहीं लेता।

    प्रेम अधिकार नहीं करता, न किसी को करने देता है। क्योंकि प्रेम अपने में संपूर्ण है।

    तुम, जब प्रेम करो तो यह मत कहो, 'ईश्वर मेरे हृदय में हैं। यह कहो कि 'मैं ईश्वर के
    हृदय में हूँ।'

    यह भी मत सोचो कि तुम प्रेम का पथ निर्धारित करोगे

    क्योंकि प्रेम, यदि तुम्हें योग्य मानेगा, तो स्वयं तुम्हारा मार्ग निधारित करेगा।

    प्रेम की इच्छा एक ही होती है, स्वयं को प्राप्त करना। लेकिन यदि तुम प्रेम करो और
    इच्छाएँ भी करना चाहो, तो तुम ये इच्छाएँ करो :

    कि तुम पिघल सको और ऐसे झरने की तरह बह सको जो रात को अपना गीत गाता
    है,

    कि तुम अतिशय कोमल होने का दर्द जान सको, कि तुम प्रेम की अपनी समझ की
    चोट का अनुभव कर सको;

    और प्रसन्न होकर उसके कारण निकलने वाला रक्त बहता देख सको।

    कि पंखों पर उड़ता हृदय लेकर सबेरे जाग सको और एक और प्रेमपूर्ण दिन बिताने के
    लिए धन्यवाद दे सको;

    कि दुपहर के वक़्त आराम करते हुए प्रेम के चरम आनंद पर ध्यान लगा सको,

    कि शाम को कृतज्ञ भाव से घर वापस आ सको, और फिर अपनी प्रिया के लिए हृदय
    में प्रार्थना और ओठों पर प्रशंसा का गीत लिए सोने जा सको।

                                                         
    स्रोत :
    • पुस्तक : मसीहा
    • रचनाकार : ख़लील जिब्रान
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2016

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