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प्रेम छह तोँ

prem chhah ton

प्रणव नार्मदेय

अन्य

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प्रणव नार्मदेय

प्रेम छह तोँ

प्रणव नार्मदेय

और अधिकप्रणव नार्मदेय

    आत्ममुग्धता

    अहं केर पाँखि ल'

    उड़ैत रहल सगरो

    मोनमे छिट्टा भरि घृणा भरने

    सभक लेल

    आत्मबोधक संग

    छिटैत रहलहुँ हम सदिखन

    भरि-भरि बाकुट नेह

    हियमे आसक अमार लेने

    दिन फिरबाक

    साइत कोनो खन

    बैसि गेल रहय अनचोके

    सिनेहक जजाति बीच हमर

    त' सोहरओने रही आत्मा ओकर नेहक संग

    अंगेजि लेने रहय ओहो सगर गात हमर

    कोनो मात्सर्जे

    से जेना कामनाक चरमसँ उपजल शून्यमे

    क्षणभरिक लेल लौकैत हो ब्रह्म

    तहिना ओकर घृणासँ खलियायल शून्यमे

    जोगओलहुँ जे नेहक एक टुकड़ी इजोत

    ओहीसँ जनमल—निस्सन प्रेम छह तोँ

    से हे

    बरू अंगेजने रहिह' ओहि शून्यकेँ सदति

    भरि लिह' आत्माकेँ

    नेह, मात्सर्ज साँचक इजोतसँ

    तोँ हम्मर जिनगी अन्तिम आस।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विसर्ग होइत स्वर (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : प्रणव नार्मदेय
    • प्रकाशन : नवारम्भ, पटना
    • संस्करण : 2017

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