Font by Mehr Nastaliq Web

प्रेम आ वासनाक मध्य ठाढ़ स्त्री

prem aa vasnak madhya thaaDh stri

रोमिशा

अन्य

अन्य

रोमिशा

प्रेम आ वासनाक मध्य ठाढ़ स्त्री

रोमिशा

और अधिकरोमिशा

    ओना तँ सब दोग-सान्हिमे होइते रहैत छल

    कोनो उद्यान, गली, सिनेमाघर, मैक. डी,

    सी.सी.डी, के.एफ.सी या कोनो आन ठाम

    कखनो-कखनो गाम घरक कोनो कोठीक दोगमे

    कऽलपर, आमक गाछीमे, मेला-ठेला सगरो

    बहुत बेर आदिकालेसँ तँ

    कंपित स्वरमे विद्रूप होइत रहल अछि स्त्रीक देह...

    आब जखन स्वतंत्रताक महायात्रापर

    निकलल अछि स्त्री

    तँ कतेक स्वतंत्रता देतनि

    समाज हुनका

    प्रेम लेल?

    दम तोड़ैत दांपत्यक

    कामुकताक लिप्सामे लटपटायल

    सेक्स नामक भूखक स्टार्टर भऽ केँ रहि जेतीह स्त्री

    मेन कोर्स सदिखन

    पुरुख लेल घरमे बैसल स्त्री होइत छथि...

    जे स्त्री वा कि पुरुख वास्तवमे दुखी छथि

    से भक्ष्य बनल छथि दांपत्यक असफलताक

    हुनका ढालि देल गेल अछि

    एकटा एहेन सामाजिक खाँचमे

    जाहिसँ मुक्ति बड्ड कठिन

    कियैक तँ खुटेसल रहै छथि सब

    दिनसँ राति धरि

    गृहस्थीक एहेन खुट्टामे

    जे सदिखन मुँहमे आँगुर कोंचि-कोंचि

    वमन करबाबैत अछि संस्कारक

    मोनमे घुरियबैत रहैत अछि अनन्त प्रश्न

    कपार उघैत रहैत अछि मर्यादाक बोझ

    लत्तम-जुत्ती कन्नारोहट कऽ

    पुनः व्याकुल भऽ जाइत छथि

    अप्पन नेनाकेँ आँखिमे उतरि आयल

    लड़खड़ाइत-थरथराइत

    जीवनक दुःस्वप्न देखि

    फेरसँ समेटि लैत छथि अपनाकेँ

    पुनः झोंका जाइ छथि गृहस्थीक भट्ठीमे...

    फेर न्यायालयक निर्णय ककर हितमे?

    पाश्चात्य गलियाराक संस्कृति पसारि

    वासनाक क्रेता विक्रेता बनि जायत समाज

    कामाकुल आर्थिक संपन्न लोक

    उजाड़ि देत कतेको घर-गृहस्थी

    अनायासहि सब भऽ जायत परित्यक्त वा परित्यक्ता

    समाजमे बनबैत एकटा ब्लैक होल

    जाहिमे असीम वेगसँ भसिया-हेरा जायब हम सब...

    मानू बात जे स्वतंत्रता प्रेम लेल नहि अछि

    प्रेम लेल कोनो स्वतंत्रताक खगता नहि

    देहसँ इतर होइत अछि प्रेम

    एहि दुनियासँ ओहि दुनियाँ धरि केर

    यात्रा कऽ सकैत अछि प्रेम

    बिना कोनो स्पर्श आत्मग्लानिक...

    मुदा एहेन प्रेम कोन पुरुष करत अहाँसँ

    के अहाँक विदीर्ण मोनक चेथड़ी समेटि

    बना लेत एकटा खोंता अप्पन हृदयमे

    जतय अहाँपर कयल गेल प्रत्येक अत्याचारकेँ

    अप्पन प्रेमक लेप लगा

    उन्मुक्त अकासमे भरय देत उड़ान?

    मानू गप्प

    समाजक धधकैत वासनासक्त मोनमे

    पलथा मारि बैसल अछि अन्हार

    जतय प्रेमक प्रकाश लेल नेत्रहीन अछि लोक

    स्त्रीकेँ निर्वस्त्र कऽ

    वासनाक मैलछौंह चादर ओढायब बड्ड आसान

    रोमांचक नील स्मृति भयातुर आँखिमे भरब सहज

    मुदा बड्ड कठिन मर्यादामे स्त्रीकेँ बिना छूने

    ओकर सुगंधकेँ अपनामे भरि

    ओकरा कोनो प्रार्थना जकाँ गबैत रहब...

    जखन कहियो वयसक कोनो सीमापर

    भेट जाइत अछि अहाँकेँ एहन कोनो प्रेम

    जे जीवनमे उगि जाय भरि आँगन

    पूसक जाड़क बाद बला रौद जकाँ

    जकरासँ भेटि जाय जीबै लेल ऊष्मा

    देदीप्यमान भऽ सकय अहाँक स्त्रीत्व

    तँ निर्दोष भऽ गाबू अहाँ प्रेम गीत

    कियैक तँ अहाँक एहेन उन्मुक्तता रचत इतिहास

    चुरुक भरि पानिमे पुरुखकेँ धोअय पड़तनि

    अप्पन वासनासक्त आत्मा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : फूजल आँखिक स्वप्न (पृष्ठ 25)
    • रचनाकार : रोमिशा
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 2019

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY