पिता होना बचा रहेगा

pita hona bacha rahega

विहाग वैभव

विहाग वैभव

पिता होना बचा रहेगा

विहाग वैभव

और अधिकविहाग वैभव

    आसमान से एक फूल गिरा

    उसकी प्रार्थना में उठी दोनों बाँहों में

    गिरते हुए झरने-सा उजला-सा फूल

    ख़ुशबुओं से भर दिया आत्मा का कोना-कोना

    वह जीवन मे पहली बार पिता बना

    पिता तो एक ही बार बनता है पुरुष

    फिर वह जीवन भर पिता रहता है

    पिता ने उस फूल जैसी बेटी को

    बहुत आहिस्ता-आहिस्ता छुआ

    डरते हुए कि कहीं इन कठोर हाथों का स्पर्श

    दुनिया की महान ख़ूबसूरत संपदा को नष्ट कर दे

    कहीं उसकी आध्यात्मिक नींद का जादू टूट जाए

    गोद मे जब भी उठाया तो ध्यान रखा

    कहीं दुनिया उसके हाथों से छूटकर गिर पड़े

    वह इस ग्रह पर निचाट अकेला हो जाएगा तब तो

    यूँ समझिए कि जैसे कोई अपना हृदय निकाल दे अपनी देह से

    और उसे गोद में लेकर झुलाता रहे

    झूमता रहे ख़ुद भी किसी अजानी ख़ुशी के हाथों सौंपकर ख़ुद को

    पिता ने उसे जब भी कंधे पर चढ़ाया तो महसूस किया कि

    ईश्वर कितनी ज़िम्मेदारी भरी नौकरी करता होगा

    पिता ने उसे सृष्टि की आख़िरी उम्मीद की तरह पाला

    यूँ कि जैसे इसके बाद

    इसके होने से

    आसमान किसी विशाल काँच की तरह टूटकर गिर जाएगा समुद्र की गोद में

    सारे जंगल सूखकर समा जाएँगे धरती के गर्भ में

    सारे पक्षी चले जाएँगे अपने-अपने घोसलों में हमेशा-हमेशा के लिए

    हवा ठहर जाएगी यकायक चलते-चलते

    वह दुनिया का महान पिता होने की कोशिश करता और

    उस लड़की से अथाह प्रेम करता

    जो उसकी बेटी थी

    महीने गुज़रे, साल गुज़रे, दिन बीतते रहे

    वह आसमानी फूल बड़ी होती रही

    पिता का प्रेम भी बढ़ता गया दिन गए, साल गए

    अब भी पिता को अथाह प्रेम है अपनी बेटी से

    पर प्रेम भी वैसा कि जैसा कोई अपनी पत्नी से करता है प्रेम

    या करना चाहता है

    जैसे सभी प्रसिद्ध प्रेम-कथाओं के नायक नायिका के बीच होता है प्रेम

    पिता पुरुष है

    बेटी प्रेमिका है एक पुरुष पिता की

    पिता की आत्मा नाख़ुश है ख़ुद से

    और पिता बिलख रहा है अपने स्नेह में

    कि यह सच किस नदी में बहा दे

    किस आग में जला दे

    किस क़ब्र में दफ़ना दे

    पिता ने अपनी घुटन के सामने टेक दिए हैं घुटने

    मगर प्रेम है कि छूटता नहीं

    पिता जंगल गया है अपनी बेचैनी त्यागने

    पिता गुफाओं में बैठा ख़ुद को साध रहा है अपने ही ख़िलाफ़

    पिता पहाड़ों पर बैठकर रो रहा है खो चुकी आवाज़ में

    यह पिता जानता है ईश्वर होना कितना कठिन है

    यह उन पिताओं की कथा है

    जो ईश्वर नहीं हो सके।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विहाग वैभव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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